लक्षण : इसके लक्षणों में इनफर्टिलिटी के अलावा अचानक वजन घटना, हल्का या तेज बुखार, पेल्विक(पेडू) में दर्द और हल्का पीला बदबूदार डिस्चार्ज होना शामिल हैं।
जांच : विवाहित महिलाओं में सबसे जरूरी टेस्ट प्रीमेन्स्ट्रल बायोप्सी है जबकि अविवाहित युवतियों में मासिक रक्तस्राव से इसकी जांच होती है। इसके अलावा चेस्ट एक्सरे, यूरिन टेस्ट, लेप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी (एंडोस्कोपिक प्रक्रिया) आदि टेस्ट किए जाते हैं।
सावधानी : इस समस्या से पीड़ित महिला मां बन सकती है लेकिन गर्भावस्था के दौरान भी महिला को टीबी का इलाज कराते रहना चाहिए। साथ ही आवश्यकतानुसार सोनोग्राफी भी करानी चाहिए ताकि बच्चे पर पड़ने वाले प्रभावों का पता चलता रहे। टीबी रोग से प्रभावित मां के गर्भस्थ शिशु को यह रोग होने की आशंका नहीं होती है।
पीड़ित महिला अपने नवजात शिशु को फीड करा सकती है। इससे बच्चे पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। डॉक्टर इस दौरान उन दवाओं को बंद करवा देते हैं जिनसे बच्चे को नुकसान हो सकता है। टीबी के दौरान शरीर में काफी कमजोरी आ जाती है इसलिए मरीज को प्रोटीन से भरपूर आहार जैसे पनीर, रसगुल्ला, दालें, सोयाबीन और सूखे मेवे आदि लेने चाहिए।
6-9 माह तक इलाज –
इस इंफेक्शन से इलाज के लिए टीबी रोधी दवाएं दी जाती हैं जिन्हें एंटी ट्यूबरक्यूलर ट्रीटमेंट (एटीटी) कहते हैं। ये दवाएं काफी असरकारक होती हैं। इस रोग का इलाज छह से नौ महीनों तक चलता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि संक्रमण किस स्टेज पर है। इस दौरान डॉक्टरी सलाह का पालन जरूर करना चाहिए।