ऐसी आवाजें आती हैं टिनिटस में
व्हिस्लिंग – फुसफुसाहट
रशिंग- सरसराहट
रिंगिंग- घंटियां बजना
ऐसा क्यों होता है –
लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहने या सिर पर चोट लगने से यह रोग हो सकता है। कान की परेशानियां जैसे वेक्स फूलना, यूस्टेकियन ट्यूब में असामान्यताएं होना, ओटाइटिस मीडिया (कान के मध्य भाग में सूजन), ओटोस्केलेरोसिस (कान के अंदर सबसे छोटी स्टेपीज हड्डी का स्थिर होना), मिनियर्स डिजीज (कान में द्रव्य का बढ़ना) और अंदरुनी भाग में संक्रमण के अलावा सुनने में कमी आना। कुछ लोगों में सीपी एंगल का एकॉस्टिक न्यूरोमा (कान के आंतरिक भाग में ब्रेन ट्यूमर) से हो सकता है। डाइयूरेटिक, क्यूनिन एंटीमलेरिया, एमाइनोग्लाइकोसाइड एंटीबायोटिक दवाओं और एस्पिरिन जैसी ऑटोटॉक्सिक दवाओं के लंबे प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 85 डेसिबल से कम आवाज को अधिकतम आठ घंटे के लिए सुरक्षित माना गया है। 140 डेसिबल आवाज के संपर्क में आने पर व्यक्तिबहरा हो सकता है।
सावधानी ही समाधान है –
पर्याप्त पानी पीकर खुद को तरोताजा रखें
शोर वाली जगहों पर कम से कम समय बिताएं
टीवी हो या कोई और उपकरण, वॉल्यूम कम ही रखें
कान की सुनने की क्षमता की जांच ऑडियोमेट्री से की जाती है और जरूरत पडऩे पर सी.टी.स्कैन व एमआरआई की जाती है। जिन रोगों में टिनिटस भी एक लक्षण होता है उनमें इलाज कर इसे ठीक किया जाता है। नस की कमजोरी से बधिरता या समस्या का स्पष्ट कारण पता न होने पर मरीज को मल्टीविटामिन-एंटीऑक्सीडेंट, जिनकोविलोवा, गावापेंटीन, कारोवेरीन जैसी न्यूरोप्रोटेक्टिव दवाएं और कई बार ट्रेन्क्यूलाइजर व एंटीड्रिपे्रसेंट दवाएं भी देते हैं-