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mother’s day special 2018 : जानिए उम्र के हिसाब से ‘मम्मी’ की सेहत

locationजयपुरPublished: May 13, 2018 05:07:29 am

मां समाज और परिवार की धुरी है। हमारी सेहत का पाया मां ही संभालती है लेकिन इसमें वो इतना रम जाती है कि अपनी सेहत को ही भूल जाती है।

mother's day

मां समाज और परिवार की धुरी है। हमारी सेहत का पाया मां ही संभालती है लेकिन इसमें वो इतना रम जाती है कि अपनी सेहत को ही भूल जाती है। यह जरूरी नहीं कि मां के बिगड़ते स्वास्थ्य का ढलती उम्र में ही पता चले। उम्र के विभिन्न पड़ाव पर सेहत से जुड़े संकेतों की पहचान जरूरी है। जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-

खून शरीर का अहम हिस्सा होता है जो शरीर के सभी अंगों, कोशिकाओं और मांसपेशियों को जीवित और सक्रिय रखने का काम करता है। खून के लिए शरीर में आयरन बहुत जरूरी है। बच्चियां जब छोटी होती हैं तबसे ही उनमें आयरन की कमी नहीं होनी चाहिए। इसकी कमी उन्हें बढ़ती हुई उम्र में बीमार बना सकती है। आयरन से शरीर में लाल रक्त कणिकाएं बनती हैं जो रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करती हंै। पर्याप्त मात्रा में आयरन रहने से शरीर और दिमाग में रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है। बच्चियों को बढ़ती उम्र के साथ डॉक्टरी सलाह पर आयरन की गोली देनी चाहिए जिससे उनका विकास स्वस्थ युवती और एक मां के रूप में हो सके।

25-35 वर्ष की उम्र
यह उम्र युवावस्था की होती है जिसमें अधिकतर लड़कियों की शादी हो जाती है। शादी के बाद आमतौर पर एनीमिया, माहवारी की अनियमितता, संक्रमण रोग, रिप्रोडक्टिव ऑर्गन इंफेक्शन और अनचाहे गर्भ के मामले अधिक देखे जाते हैं। 50 फीसदी लड़कियां शादी के बाद अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं बता पाती हैं जिससे बीमारी अधिक फैल जाती है। तकलीफ होने पर बिना देरी किए डॉक्टर को दिखाएं। लापरवाही से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी अधिक बढ़ सकती है।

25-35 वर्ष की उम्र
ये उम्र महिलाओं की वह अवस्था है जिसमें वे अपने साथ बच्चों और घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालती हैं। काम का बोझ अधिक होने से शरीर में ऊर्जा की कमी होती है। मानसिक दबाव बढ़ता है। इसी उम्र में हॉर्मोन असंतुलन से महिला का वजन तेजी से बढ़ता या घटता है। बाल झडऩे के साथ जोड़ों में दर्द और हड्डियां कमजोर होती हैं। इससे कमजोरी, चक्कर आना, काम में मन न लगना और हर वक्त थकान रहती है। गंभीर मामलों में घबराहट के साथ बेहोशी भी आती है।

35-50 वर्ष की उम्र
उम्र का ये पड़ाव कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की शुरुआत का भी होता है। माहवारी में अनियमितता उम्र के इसी दौर में शुरू होती है। हॉर्मोनल असंतुलन की वजह से थायरॉइड और शरीर में सूजन और मोटापे की तकलीफ बढ़ती है। बच्चेदानी के मुंह का कैंसर भी इसी उम्र में अधिक होता है। बढ़ती उम्र के साथ शरीर भी कमजोर होता है जिससे मानसिक रोग होने का खतरा रहता है। ये उम्र अधिक देखभाल की होती है ताकि महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या न हो।

मां के साथ रोज समय बिताएं
परिवार के हर सदस्य को घर की महिलाओं के साथ रोज कुछ समय बिताना चाहिए। बच्चे नौकरीपेशा या व्यस्त रहते हैं तो हफ्ते में एक दिन मां की सेहत को लेकर उनसे बात करनी चाहिए। मां के साथ बिताया गया कुछ पल उन्हें आंतरिक खुशी देता है जो उन्हें रोगों से लडऩे की क्षमता देता है। घर का माहौल खुशनुमा और उनकी बात को तवज्जों देकर उन्हें हैल्दी रखा जा सकता है।

महिलाओं में होने वाले कैंसर
सर्विक्स: सर्विक्स (गर्भाशय) का कैंसर महिलाओं में अधिक होता है। ह्यूमन पैपीलोमा वायरस के संक्रमण से यह बीमारी होती है। प्रमुख कारणों में कई पार्टनर्स से शारीरिक संबंध, सिगरेट पीना और गर्भ निरोधक दवाओं का अधिक इस्तेमाल है। इसमें रक्तस्राव के साथ सफेद डिस्चार्ज होता है। बीमारी जब गंभीर होती है तो पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द होता है। समय रहते इलाज शुरू कराया जाए तो मरीज की जान बच सकती है।

ओवेरियन कैंसर: यूट्रस (गर्भाशय) के दोनों तरफ नलियां होती हैं जिससे लगा अंडाशय होता है। इसी में अंडे तैयार होते हैं। निषेचन के बाद भू्रण बनता है। इसमें ही कैंसर सेल्स बनने पर ओवेरियन कैंसर होता है। शुरुआती लक्षणों में पेट में दर्द व सूजन, अपच और बैक पेन के साथ वजन भी तेजी से गिरता है।

ब्रेस्ट कैंसर: देश में इस कैंसर के मरीज सबसे अधिक हैं। ब्रेस्ट में गांठें बनना, खून या सफेद रंग का पानी निकलना, दर्द रहना, लाल रंग के चकत्ते पडऩा इसके शुरुआती लक्षण हैं। पहली स्टेज में इस रोग का बेहतर इलाज संभव है।

कैंसर से बचाव के लिए जांच
21 की उम्र के बाद पैप स्मियर टैस्ट कराएं।
हर तीन साल में एक बार यह जांच करवाएं।
30 की उम्र से एचपीवी डीएनए टैस्ट कराएं।
40 की उम्र के बाद मैमोग्राफी जांच जरुरी है।
परिवार में आनुवांशिक समस्या है तो 35 की उम्र के बाद नियमित जांच करवाते रहना चाहिए

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