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जानिए बच्चों की सेहत पर वीडियो गेम्स का अच्छा और बुरा असर कैसे होता है

locationजयपुरPublished: Nov 26, 2018 05:59:05 pm

वीडियो गेम खेलना हमारे दिमाग को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभावित करता है

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वीडियो गेम खेलना हमारे दिमाग को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभावित करता है

वीडियो गेम खेलना हमारे दिमाग को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभावित करता है। आजकल इनका उपयोग बच्चों से इंटरेक्शन यानी परस्पर संवाद के लिए होता है। इसके अलावा अगर गेम्स एक समय सीमा के भीतर खेले जाएं तो मस्तिष्क को भी फायदा होता है। इसके विपरीत लम्बे समय तक गेम्स से जुड़कर शरीर की अनसुनी करते हुए हिंसक गेम्स खेलने से सिर्फ बुरा प्रभाव सामने आता है।

अच्छे गेम्स का दिमाग के विभिन्न हिस्सों पर प्रभाव –
गेम खेलने के दौरान बच्चा जब कोई एक्शन बार-बार करता है तो उसके मस्तिष्क की कोशिकाओं में याद रखने और दोहराने की क्षमता सुधरती है।

मस्तिष्क के हिस्से जैसे प्रीमोटर और पैराइटल कार्टेक्स गेम्स खेलने में रियल टाइम एक्शन के लिए जिम्मेदार होते हैं और इससे उनकी संवेदनशीलता बढ़ती है।

गेम खेलते हुए दिमाग के फ्रंटल लोब हिस्से का उपयोग करने वालों को ऐसा मस्तिष्क प्राप्त होता है जिसे ‘वीडियो गेम ब्रेन’ कहते हैं। अच्छे गेम खेलने में इस हिस्से की क्षमता ज्यादा उपयोग में आती हैं।

वीडियो गेम खेलने के दौरान मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन पैदा होता है। यह रसायन सीखने की क्षमता और कुछ पाने की खुशी के लिए जिम्मेदार होता है।

हिंसक वीडियो गेम का प्रभाव –
हिंसा से भरे गेम्स को बार-बार खेलने से फ्रंटल लोब की सक्रियता कम हो जाती है। इससे खेलने वाले का मूड बदलता है और उसमें गुस्सा बढ़ता है जो कि गेम न खेलने के बाद भी बना रहता है।

एक हफ्ते तक हिंसक गेम लगातार खेलने से बच्चों के मस्तिष्क के बायीं ओर के हिस्से की क्षमता घटती है और भावनाओं व निर्णय लेने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।

मारपीट, अपराध, युद्ध और मानवीय मूल्यों को न मानने वाले गेम्स से बच्चों की सोच व विचार नकारात्मक बनते हैं। बच्चों को सपनों और अपनी अन्य सामान्य गतिविधियों में भी गेम्स के दृश्य नजर आते हैं। कई बार बच्चे गेम्स के कारण कल्पना लोक में खोए रहते हैं।
ऐसे बच्चे जो उत्तेजना और हिंसा से भरे गेम्स ज्यादा खेलते हैं, वे सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा बेचैन रहते हैं।

अच्छे गेम्स का अच्छा सच –
ऐसे गेम्स जिनमें टीम वर्क होता है बच्चों में सामूहिकता और लीडरशिप के गुण बढ़ाते हैं।
ऐसे गेम्स जो बच्चों को अच्छी आदतें या बीमारियों से बचना सिखाते हैं, मौखिक या लिखित निर्देशों से ज्यादा कारगर होते हैं।

उदाहरण के लिए, अस्थमा वाले बच्चों के लिए खासतौर पर बनाया गया गेम डॉक्टर के निर्देशों से ज्यादा मददगार होता है।
अच्छे गेम बच्चों में आत्मनिर्भर बनने और अपने फैसले खुद लेने की क्षमता को बढ़ावा देते हैं। इससे वे अपनी छोटी समस्याएं खुद सुलझा सकते हैं और नए सबक सीखते हैं।

बुरे गेम्स का खरा सच –
हिंसा से भरे या बदला लेने वाले गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ाते हैं।
बुरे गेम्स भावनाओं पर बुरा असर डालते हैं और अच्छी भावनाओं को दबाते हैं।
लम्बे समय तक गेम्स खेलने से मोटापा बढ़ता है, सिरदर्द, चिढ़चिढ़ापन, ध्यान न लगना, लत लगना और पढ़ाई व स्कूल में खराब प्रदर्शन जैसे समस्याएं भी होती हैं। गेम्स उन बच्चों के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं, जिन्हें मिर्गी या किसी अन्य तरह के दौरे पड़ते हैं या फोटोसेंसिटिविटी डिसऑर्डर होता है। गेम्स इन्हें उकसाने का काम करते हैं।

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