प्लेट लेट्स रक्त का ही एक भाग होती हैं जो रोजाना बनती व नष्ट होती हैं। इनकी आयु 4-7 दिन की होती है। ये शरीर में रक्त को रोके रखने का काम करती हैं ।
डेंगू का मच्छर नसों को निशाना बनाता है जिससे संक्र मण रक्त में तेजी से फैलता है। प्लेटलेट्स की संख्या कम होने पर खून का थक्का नहीं बनता और रक्तस्राव होने लग जाता है। कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) जांच के जरिए रोगी की प्लेटलेट्स का पता लगाया जाता है ।
सिंगल डोनर प्लेटलेट्स
यदि मरीज की प्लेटलेट्स सिर्फ 20 हजार रह जाए तो सिंगल डोनर प्लेट लेट्स के जरिए स्वस्थ व्यक्ति (जिस का ब्लड गु्रप रोगी से मिलता हो) की प्लेटलेट्स रोगी को चढ़ाई जाती हैं। इस प्रक्रिया से पहले दाता की जरूरी जांचें की जाती हैं जिसमें देखा जाता है कि कहीं व्यक्ति को एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी व सी, सिफ्लिस और मले रिया आदि रोग तो नहीं ।
इसके बाद मरीज व दाता के रक्त के नमूने लेकर उनका मिलान किया जाता है। यदि मिलान सफल हो तो दाता को सेपरे शन मशीन से जोड़ दिया जाता है।
इस दौरान दाता का रक्त मशीन से होते हुए वापस उसी के शरीर में चला जाता है। लेकिन उसके रक्त में सेे सेपरे शन मशीन प्लेटलेट्स को एक प्ला स्टिक की थैली में एकत्र करती रहती है।
प्लेटलेट्स के गुच्छे न बनें इसलिए इन्हें एक घंटे तक सैकर मशीन में रखा जाता है और इसके बाद ड्रिप के जरिए मरीज को चढ़ाया जाता है। मरीज एक हफ्ते में केवल एक बार प्लेटलेट्स ले सकता है और डोनर केवल 30-50 हजार प्लेट लेट्स ही दे सकता है।