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स्वास्थ्य

यहां जानिए जीका वायरस शरीर के किस अंग में कितने समय तक रह सकता है

मच्छर के काटने के 10 से 12 दिन के बाद शरीर पर दिखाई देने शुरू होते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दो से सात दिनों तक बने रहते हैं।

Oct 13, 2018 / 07:44 pm

Rashi Bishnoi

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यहां जानिए जीका वायरस शरीर के किस अंग में कितने समय तक रह सकता है

जीका वायरस से गर्भस्थ के मानसिक विकास पर असरदि न में सक्रिय रहने वाले एडीज मच्छर के काटने से ज़ीका वायरस फैलता है। मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काट ले और जिसके खून में वायरस मौजूद है, तो यह मच्छर किसी अन्य व्यक्ति को काटकर वायरस फैला सकता है। मच्छरों के अलावा असुरक्षित शारीरिक संबंध, संक्रमित खून,ऑर्गन डोनेशन, लार से भी जीका बुखार या वायरस फैलता है। मच्छर के काटने के 10 से 12 दिन के बाद शरीर पर दिखाई देने शुरू होते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दो से सात दिनों तक बने रहते हैं।

चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया या ज़ीका की पहचान

ज़ीका बुखार में डेंगू बुखार की ही तरह लक्षण होते हैं। थकान, बुखार, लाल आंखे, हल्का बुखार, अंगुलियों में दर्द, जोड़ों में दर्द व मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, आंखों के पीछे की तरफ दर्द और शरीर पर लाल चकत्ते होने लगते हैं। यह लक्षण मच्छर के काटने के 10 से 12 दिन के बाद शरीर पर दिखाई देने शुरू होते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दो से सात दिनों तक बने रहते हैं। शरीर पर यह लक्षण 6 से 7 दिन रहते हैं। इस वायरस के पूरी तरह ठीक होने और इन्फेक्शन का शरीर पर असर 3 से 4 महीने रहता है।

तीन माह तक रहता प्रभाव

शरीर में ज़ीका वायरस का इन्फेक्शन यूरिन में 2-3 सप्ताह, पुरुष के वीर्य में 6-8 सप्ताह, महिला की वेजाइना में 3 महीने तक, ब्लड में 8-10 सप्ताह तक रहता है। सामान्यता यह इन्फेक्शन शरीर में 3 महीने तक रहता है, जिससे एक से दूसरे व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा 3 महीने तक रहता है।

साफ-सफाई जरूरी

पानी इकठ्ठा न होने दें, साफ़-सफाई रखें, ओआरएस घोल और तरल-पदार्थ ज्यादा लें, पूरी आस्तीन के कपडे पहनें, खून चढ़ाते समय ध्यान रखें, मच्छरदानी या मॉस्किटो रिपेलेंट का इस्तेमाल करें। गर्भवती मच्छरों वाले स्थान पर न जाए।

गर्भस्थ शिशु व मां दोनों को खतरा

गर्भवती को ज़ीका वायरस होने पर इसका दुष्प्रभाव भ्रूण पर हो सकता है। गर्भवती को पहले और दूसरे तिमाही में जीका वायरस होने पर भ्रूण में विकृति का खतरा ज्यादा रहता है। शिशुओं में माइक्रोसिफेली और मस्तिष्क संबंधी रोग होने की आशंका रहती है। शिशु के मानसिक तौर पर विकृति और सामान्य की अपेक्षा शिशु का सिर छोटा होता है, जिसे माइक्रोसिफेली कहा जाता है। संक्रमित गर्भवती के पहले तीन महीने में मां से बच्चे को 59 प्रतिशत ट्रांस्प्लासेंटल इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है, जिससे बच्चे के ब्रेन में कैल्शियम जमा होने से बच्चे के मस्तिष्क का विकास नहीं हो पाता है, जिसे मिक्रोकिफेली कहते हैं। इसके अलावा गर्भवती को 9 माह में जीका वायरस होने पर बच्चे के सुनने की क्षमता कम और आंखों से दिखना बंद हो जाता है। अन्य लोगों में इस वायरस से संक्रमित होने पर बड़ों को गुलियन बेरी सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर को प्रभावित करती है, जिससे अंगों में कमजोरी, लकवा और अन्य कई समस्याएं हो सकती है।


लगते हैं। यह लक्षण मच्छर के काटने के 10 से 12 दिन के बाद शरीर पर दिखाई देने शुरू होते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दो से सात दिनों तक बने रहते हैं। शरीर पर यह लक्षण 6 से 7 दिन रहते हैं। इस वायरस के पूरी तरह ठीक होने और इन्फेक्शन का शरीर पर असर 3 से 4 महीने रहता है।

इलाज की प्रक्रिया

जीका वायरस से बचने के लिए अभी तक कोई वैक्सीनेशन और दवा उपलब्ध नहीं हैं। इसमें लक्षणों के आधार पर इलाज दिया जाता है, बुखार और दर्द से आराम देने के लिए मरीज को पैरासिटामॉल देते हैं। ब्लड व यूरिन का आरटी-पीसीआर, एंटी बॉडी टेस्ट आईजी, पीआरएएनटी किए जा सकते हैं। सामान्यता जीका वायरस की पहचान के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट किया जाता है। आरटीपीआर की जांच करके वायरस की स्थिति का पता चलने पर संक्रमित व्यक्ति को जोड़ों में असहनीय दर्द होने पर दर्द निवारक दवाएं दी जाती है। आयुर्वेद से इलाज : गिलोय रस, महासुदर्शन घनवटी, ज्वरहर कसाय को रोगी की अवस्था के अनुसार विशेषज्ञ की सलाह से ले सकते हैं।

डॉ. सुनील महावर फिजिशियन

डॉ. अजय साहू आयुर्वेद विशेषज्ञ

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