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B Alert – सांस फूलने के साथ बलगम आए ताे ना करें लापरवाही

locationजयपुरPublished: Jun 23, 2019 06:41:10 pm

अगर आपको लंबे समय से सांस फूलने के साथ बलगम आने की समस्या है तो लापरवाही न करें, यह फेफड़ों के सिकुड़ने की

Interstitial lung disease

B Alert – सांस फूलने के साथ बलगम आने पर न करें लापरवाही

अगर आपको लंबे समय से सांस फूलने के साथ बलगम आने की समस्या है तो लापरवाही न करें। यह फेफड़ों के सिकुड़ने की बीमारी आईएलडी ( इंटरस्टीशियल लंग डिजीज ) हो सकती है। इसमें फेफड़े धीरे-धीरे सिकुड़ने के बाद खोखले हो जाते हैं। यह बीमारी इसलिए गंभीर मानी जाती है क्योंकि अभी तक न तो इसके कारणों का पता चला है और न ही इलाज के लिए कारगर दवा बनी है। शुरुआती चरण में इसके लक्षणों के आधार पर इलाज करके मरीज को राहत देने की कोशिश की जाती है।
जरूरी जांचें एक्स-रे
सबसे पहले डॉक्टर मरीज का एक्स-रे करवाकर स्थिति का पता लगाते हैं। अगर डॉक्टर को लगता है कि फेफड़े में आईएलडी के लक्षण है तो वे आगे की जांच करवाते हैं।
सीटी स्कैन
आईएलडी की पहचान के लिए सीटी स्कैन सबसे उपयोगी जांच है। इसमें फेफड़ों के लगभग सभी हिस्सों की स्पष्ट इमेज आ जाती है, लेकिन कई बार जरूरत पडऩे पर विशेषज्ञ फेफड़ों की बॉयोप्सी भी कराते हैं।
बायोप्सी
इसमें चिकित्सक मरीज के प्रभावित फेफड़े से ऊत्तक निकालकर माइक्रोस्कोप के जरिए रोग का पता लगाते हैं। इससे रोग की वास्तविक स्थिति (स्टेज) का पता चलता है।

ये हैं लक्षण
– सूखी खांसी और बलगम आना।
– शरीर का वजन कम होना।
– चलने पर सांस फूलना।
– सीने में दर्द।
– बीमारी बढ़ने पर बैठने पर भी सांस फूलने की समस्या हो सकती है।
संभावित कारण व इलाज
फेफड़े की बीमारी मुख्य रूप से बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से होती है। लेकिन आईएलडी के सही कारणों का अभी तक स्पष्ट पता नहीं चला है। ऐसे कई संभावित कारण हैं जिनके आधार पर इसका अनुमान लगाया जा सकता है जैसे –
– एस्बेस्टस (अभ्रक वाली चीजें) बालू के कण।
– टेलकम पाउडर कोयला और धातुओं के कण।
– अनाज की कटाई-छंटाई से निकलने वाली धूल।
इलाज :
इडियोपैथिक (जिसके कारणों का पता न हो) बीमारी होने के कारण विशेषज्ञ इसका इलाज लक्षणों के आधार पर करते हैं। अमरीका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्टे्रशन की ओर से इस रोग में ‘परफैनीडॉन’ नामक दवा लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन यह दवा भी पूरी तरह से कारगार नहीं मानी जा रही है।
40 पार के लोगों को खतरा
आईएलडी फेफ ड़े से जुड़ी लगभग दो सौ बीमारियों का एक समूह है। ज्यादातर मामलों में यह बीमारी 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखी जाती है। बीमारी के शुरुआत में सांस फूलने और बलगम आने जैसी समस्याएं सामने आती हैं, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है सांस फूलने की समस्या भी बढ़ती जाती है। इस बीमारी में फेफड़े सिकुड़कर मधुमक्खी के छत्ते के आकार का हो जाता है। इसका एकमात्र विकल्प फेफड़ों का प्रत्यारोपण है।
बहुत खर्चीला है फेफड़ों का ट्रांसप्लांट
फेफड़ों के प्रत्यारोपण का काम देश में शुरू हो गया है लेकिन यह बहुत महंगा है। साथ ही फेफड़ों के दानदाता आसानी से न मिलना भी एक बड़ी समस्या है। इसके कारण प्रत्यारोपण में काफी मुश्किलें सामने आती हैं।शुरुआत में सांस फूलने और बलगम आने जैसी समस्याएं सामने आती हैं, बीमारी बढ़ने के साथ परेशानी अधिक बढ़ जाती है।
क्या करें
– धूम्रपान न करें।
– अधिक से अधिक पानी पिएं।
– ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें।
– सर्दी में ठंडी चीजों से बचें।
– दूषित वायु से खुद को बचाएंं।
– घर की साफ-सफाई का खयाल रखें।
– एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर पैष्टिक भोजन लें।
– फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कामों में सावधानी बरतें ।
विशेषज्ञ की सलाह
आईएलडी के सही कारणों का पता न होने से बचाव के बारे में ठोस जानकारी नहीं है। फिर भी मरीज को उन सभी संभावित चीजों से दूर रहना चाहिए जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जांचों से मरीज में आईएलडी की पुष्टि हो चुकी है तो उसे डॉक्टरी सलाह पर पर काम करना चाहिए। इसके अलावा विशेषज्ञ की सलाह से निकोकोकल व इनफ्लूएंजा वैक्सीन का टीकाकरण भी कराया जा सकता है जिससे इम्युनिटी बढ़ती है।
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