काटे गए स्थान पर 80 प्रतिशत मरीज खुजली या दर्द महसूस करते हैं और इस दौरान उनके शरीर का तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो जाता है। ऐसे में मरीज को पानी और हवा से डर लगने लगता है। पानी के नाम से ही उसकी मांसपेशियों में अकड़न आने लगती है। इस रोग की अवधि 2-3 दिन या 5-6 दिन तक हो सकती है जिसमें रोगी का अपनी मांसपेशियों पर नियंत्रण नहीं रहता।
काटने पर –
कुत्ते के काटने पर जख्म को पानी और साबुन से अच्छी तरह साफ करना चाहिए। नल के नीचे कम से कम 5 मिनट तक के लिए जख्म को पानी से धोते रहें।
कुत्ते को मारे नहीं बल्कि 10 दिन तक निगरानी में रखें। पागल कुत्ता सामान्यत: काटने के 5 दिन में मर जाता है।
काटे हुए अंग पर कभी भी पिसी हुई मिर्च या चूना नहीं लगाना चाहिए।
जख्म पर न तो टांकें लगवाएं, न इसे ढंके और न ही पट्टी करवानी चाहिए।
उपचार –
टीके जरूर लगवाएं।
यदि किसी जंगली पशु ने भी काटा है तो भी टीके अवश्य लगवाएं।
इसमें 1 या 2 टीके नहीं बल्कि टीकों का पूरा कोर्स होता है।
इलाज में किसी भी प्रकार लापरवाही नहीं बरतें। ध्यान रखिए अधूरा इलाज करवाना आपके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
इसके उपचार के लिए विशेषज्ञ एंटी रेबीज सीरम लगाते हैं।
डॉक्टरी सलाह –
इलाज के दौरान मरीज को मादक पदार्थों जैसे शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
अत्यधिक शारीरिक और मानसिक श्रम करने से बचना चाहिए।
ध्यान रहे कि मरीज देर रात तक न जागे और पूरी नींद ले।
कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह के बिना न लें क्योंकि कुछ दवाएं विपरीत असर डालती हैं जैसे कार्टीकोस्टीरोयड व इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं।
सावधानियां –
आवारा कुत्तों को अपने गांव, मौहल्ले या शहर में न पलने दें। स्थानीय निकायों का सहयोग लें।
पालतू कुत्ते को एंटी रेबीज वैक्सीन समय-समय पर लगवाते रहें। रेबीज लाइलाज है जिसका बचाव ही समाधान है।