रोग की पहचान –
लंबे समय से बुखार, जोड़ों में दर्द, त्वचा में रूखापन, बाल गिरने या मुंह में छालों की समस्या रहने पर एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडीज (एएनए) व डबल स्टैंडर्ड डीएनए (डीएसडीएन) टैस्ट कराए जाते हैं ताकि एसएलई रोग का पता चल सके। इसके बाद यूरिन में प्रोटीन की जांच की जाती है। आमतौर पर यूरिन में प्रोटीन आने के कोई लक्षण नहीं होते इसलिए टैस्ट कराना जरूरी होता है। रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर मरीज का फौरन इलाज किया जाता है वर्ना यूरिन में ब्लड आने या किडनी के काम न करने जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं। कई मामलों में मरीज की जान भी जा सकती है।
बचाव ही उपचार –
एसएलई के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है इसलिए बचाव ही उपचार है। मेडिकल हिस्ट्री होने पर मरीज को सतर्क रहना चाहिए और डॉक्टरी सलाह पर साल में एक बार टैस्ट जरूर कराना चाहिए। इसके इलाज में दवाओं से हानिकारक एंटीबॉडीज नष्ट किए जाते हैं जिससे शरीर में मौजूद स्वस्थ और लाभदायक एंटीबॉडीज सक्रिय होकर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने लगते हैं।