पेप्टिक अल्सर होने से मरीज को भूख कम लगती है।इसके अलावा पेट में दर्द, जलन, उल्टी या मिचली आती है। कई बार उल्टियों में खून भी आने लगता है। अल्सर के पकने पर काले रंग का मल होने लगता है।
लक्षणों के आधार पर सबसे पहले सोनोग्राफी करते हैं ताकि गॉलब्लैडर और पेन्क्रिएटाइटिस संबंधी समस्या का पता लग सके। फिर एंडोस्कोपी जांच कर पेट के भीतर की स्थिति को देखते हैं ताकि कारण पता कर इलाज तय किया जा सके।
भोजन करने के तुरंत बाद सोने से रिफ्लक्स की समस्या होती है। इस दौरान जो खाना खाया है वह सोने के बाद मुंह में पानी के साथ आता है। इससे पाचनतंत्र में असंतुलन होने से पेट में घाव, छाले या अल्सर बन जाते हैं। भोजन करने के कुछ समय बाद तक टहलने से खाना आसानी से पचता है। वर्ना अपच, पेट में संक्रमण और फिर पेप्टिक अल्सर का कारण बनती है।
एसिडिटी सिर में चढ़ती है : पेट में गैस की समस्या से पीड़ित लोगों की शिकायत होती है कि इस वजह से उन्हें सिर में दर्द रहता है। जबकि हकीकत में इन लोगों को डिस्पेप्सिया की समस्या होती है। इसमें रोगी को गैस के साथ माइग्रेन की तकलीफ होती है और उसे लगता है कि गैस सिर में चढ़ गई है जबकि ऐसा नहीं है। ऐसे में डॉक्टरी सलाह से दवा लेने पर आराम मिल जाता है।
रोगी मिर्च मसाला, तुली भुनी चीजें, जंक व फास्ट फूड, बासी खाना, सिगरेट, शराब से परहेज करें। ये पेट में गर्मी करती हैं जिससे संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी की चपेट में आने के बाद हरी सब्जियां और मौसमी फल खाने से फायदा मिलता है।
एलोपैथी : बैक्टीरिया के कारण यदि रोग हुआ है तो रोगी को दो हफ्ते के लिए एंटीबायोटिक दी जाती हैं। कुछ दवाएं गैस-अपच की समस्या खत्म करने के लिए देते हैं ताकि रोगी को राहत मिल सके। रोगी को प्रोटोन इंहिबिटर पंप ( गैस व एंटीबायोटिक का मिश्रण ) दवा देते हैं जो लाभदायक है। जरूरी नहीं कि पेप्टिक अल्सर के हर मामले का कारण मिर्च-मसालेदार भोजन ही हो।
आयुर्वेद : रोगी को खानपान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। जल्द राहत के लिए मूंग की दाल, खिचड़ी, अंकुरित चने, जौ का सत्तू, पेठा, ठंडा दूध पीना फायदेमंद है। आम्रलकी चूर्ण व सौंफ को रात में पानी में भिगोने के बाद उसका पानी छान कर पीने से पेट को ठंडक और आराम मिलता है। रोगी को कपालभाति नहीं करना चाहिए। वर्ना दिक्कत बढ़ती है। प्राणायाम, शीतली व भ्रामरी कर सकते हैं।