बच्चे का पालन-पोषण ठीक से कर पाउंगी या नहीं, प्रसव के बाद फैमिली सपोर्ट मिलेगा या नहीं, शिशु की परवरिश के लिए शारीरिक रूप से सक्षम हूं या नहीं… ये भ्रम प्रसव के बाद महिला के मन में रहते हैं। ऐसा लगभग 6 हफ्तों तक होना सामान्य है लेकिन इससे ज्यादा समय तक ऐसे खयाल गंभीर डिप्रेशन की ओर इशारा करते हैं। कई बार लंबे समय तक इस समस्या से पोस्टपार्टम साइकोसिस हो सकता है जो दुर्लभ बीमारी के रूप में सामने आता है।
हार्मोन्स में बदलाव होना प्रमुख है। कई बार किसी बीमारी, परेशानी या पोषक तत्त्वों की कमी के चलते गर्भावस्था के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा ना लेने या इनके दुष्प्रभाव से भी महिला का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। घर की जिम्मेदारी के साथ यदि व्यवसायिक रूप से व्यस्त हैं तो भी दोनों के बीच तालमेल बनाने का तनाव भी मानसिक और व्यवहारिक रूप से असर करता है।
इस समस्या के लक्षण अलग-अलग महिला में भिन्न हो सकते हैं। साथ ही दिन-ब-दिन इनकी गंभीरता कम होने लगती है। बिना कारण उदास रहना और रोना, थकान होने के बावजूद नींद न आना या जरूरत से ज्यादा देर तक सोते रहना, बच्चे की परवरिश, परिवार के सहयोग व जिम्मेदारी और समाज के साथ से जुड़े नकारात्मक विचार आना प्रमुख हैं। कई बार मां खुद को नुकसान पहुंचाने जैसा गंभीर कदम तक उठा लेती है।
मनोरोग फैमिली हिस्ट्री जानकर, बातचीत कर समस्या को समझते हैं। इसके बाद रोग और इसकी गंभीरता को जानने के बाद इलाज तय करते हैं। प्राथमिक उपचार के तौर पर काउंसलिंग की मदद ली जाती है। लेकिन कई बार एंटीडिप्रेसेंट दवाओं से भी लक्षणों को धीरे-धीरे कम किया जाता है। हार्मोन्स का स्तर बेहद कम होने पर कई बार हार्मोनल थैरेपी भी चलाई जाती है। महिला को फैमिली सपोर्ट देने की सलाह देते हैं।