ग्लूकोमा के प्रकार –
ओपन एंगल ग्लूकोमा : इसमें आंख का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ता है व मरीजों को अक्सर अपनी बीमारी का अहसास नहीं होता। इलाज न होने पर यह अंधेपन का कारण भी बन सकता है। इसमें एंटीग्लूकोमा आई ड्रॉप द्वारा ग्लूकोमा को नियंत्रित कर सर्जरी को टाला जा सकता है। लेकिन रोशनी चली गई हो तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता। इसलिए दवाओं व ड्रॉप्स का प्रयोग नेत्र रोग विशेषज्ञ की देख रेख में करें।
क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा : इसमें एक्वियस ह्यूमर का प्रवाह अचानक रुकने से आंख का प्रेशर बढ़ता है व आंखों में दर्द, सिरदर्द, धुंधला दिखना, प्रकाश के स्रोतों के चारों ओर रंगीन गोल घेरे जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इस रोग में लेजर किरणों से एक्वियस ह्यूमर के बहाव के लिए नया छेद बनाया जाता है जिसे लेजर पेरीफेरल आईराडोटोमी कहते हैं। इसके बाद दबाव को दवा देकर कंट्रोल किया जाता है।
सर्जरी (टे्रबेक्यूलैक्टॉमी) : इसमें एक बहाव चैनल बनाया जाता है जिससे एक्वियस तरल पदार्थ आंखों से बाहर आकर परत (कंजंक्टिवा) के नीचे बह जाता है। कालापानी की नियमित जांच व उपचार से इससे होने वाले अंधेपन को रोका जा सकता है।
यह है प्रमुख वजह –
हमारी आंखों के अंदर एक साफ तरल पदार्थ एक्वियस ह्यूमर बहता है जो लैंस, आयरिस और कॉर्निया को पोषण देता है। इसके बहाव का संचालन करने वाले नाजुक जाल में कोई खराबी आ जाए (ओपन एंगल ग्लूकोमा) या बिल्कुल बंद हो जाए (क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा) तो इस तरल पदार्थ का निकास प्रभावित हो जाता है और आंख का प्रेशर बढऩे लगता है। इस दबाव के बढऩे से ही ग्लूकोमा की परेशानी होती है।
इन्हें है खतरा –
45 से अधिक उम्र के लोग, आंख में चोट लगने पर, फैमिली हिस्ट्री, मायोपिया (लघुदृष्टि), डायबिटीज, थायरॉइड व ब्लड प्रेशर के रोगी और लंबे समय से स्टेरोएड्स आई ड्रॉप इस्तेमाल करने वाले लोग।