माहवारी में हो सकती अनियमितता वातावरण में गर्मी बढऩे से दिमाग का हाइपोथैलमस हिस्सा प्रभावित होता है। हाइपोथैलमस माहवारी पर नियंत्रण करता है कि कब आना है, कितना रक्तस्राव होना है, कब माहवारी बंद होनी है जैसी जरूरी चीजें तय करता है। बाहरी तापमान का असर शारीरिक स्तर पर होता है और माहवारी की प्रक्रिया अनियंत्रित हो जाती है। इस तकलीफ में महिलाओं और लड़कियों को पेट में दर्द, आलस, कमजोरी, थकान महसूस होती है।
बचाव: इस रोग से पीडि़त लडक़ी या महिला के शीत गुण को संतुलित किया जाता है। इसके लिए रोगी को छाछ, नारियल पानी, खीरा, ककड़ी खाने की सलाह देते हैं। ठंडी जगह पर रहने को कहते हैं। यंत्रधारा जिसमें रोगी जहां रह रहा है वहां गीला कपड़ा लगाया जाए जिससे उसे ठंडक महसूस हो सके। रोगी को शीतवीर्य, यष्टि मधु और आंवला खाने की सलाह देते हैं।
गर्भपात का भी रहता खतरा
प्रकृति में उष्मगुण अधिक बढऩे की वजह से गर्भपात का भी खतरा रहता है। 100 में से पांच गर्भवती महिलाओं को ऐसी तकलीफ हो सकती है। गर्मी की वजह से पेट में भारीपन लगने के साथ पेट में दर्द, अचानक रक्तस्राव शुरू हो जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं। ऐसी स्थिति में रोगी को तुरंत अस्पताल पहुंचना चाहिए जिससे उसकी तकलीफ को कम कर गर्भपात से बचाया जा सके।
प्रकृति में उष्मगुण अधिक बढऩे की वजह से गर्भपात का भी खतरा रहता है। 100 में से पांच गर्भवती महिलाओं को ऐसी तकलीफ हो सकती है। गर्मी की वजह से पेट में भारीपन लगने के साथ पेट में दर्द, अचानक रक्तस्राव शुरू हो जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं। ऐसी स्थिति में रोगी को तुरंत अस्पताल पहुंचना चाहिए जिससे उसकी तकलीफ को कम कर गर्भपात से बचाया जा सके।
बचाव: ऐसी स्थिति में शीतल उपचार प्रक्रिया का पालन करते हैं। इसमें सत्त् शौत घृत प्रक्रिया के तहत पेट पर मेडिकेटेड घी जो दवा युक्त होता है उसे लगाया जाता है। खाने के लिए शतावरी चूर्ण देते हैं। बेड रेस्ट की सलाह देते हैं। सोते वक्त पैर को दो से तीन इंच ऊपर उठाकर रखने की सलाह देते हैं ताकि रक्तस्राव की गुंजाइश न रहे।
गर्मी से समय से पहले प्रसव भी
गर्मियों में समय से पहले प्रसव के भी मामले सामने आते हैं। गर्मी से शरीर की क्रिया में बदलाव होते हैं। गर्भवती के भीतर जैसे ही ये बदलाव होंगे उसे समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो जाएगी। प्रसव ३७ सप्ताह से पहले हो गया तो शिशु के फेफड़ों का विकास नहीं हो पाता है जिससे उसे सांस लेने में परेशानी होती है।
गर्मियों में समय से पहले प्रसव के भी मामले सामने आते हैं। गर्मी से शरीर की क्रिया में बदलाव होते हैं। गर्भवती के भीतर जैसे ही ये बदलाव होंगे उसे समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो जाएगी। प्रसव ३७ सप्ताह से पहले हो गया तो शिशु के फेफड़ों का विकास नहीं हो पाता है जिससे उसे सांस लेने में परेशानी होती है।
बचाव: गर्मी की वजह से समय पूर्व प्रसव से बचाने के लिए गर्भवती को जीवन्ती, दूध के साथ शतावरी और पेट पर मेडिकेटेड घी लगाने के लिए देते हैं। १०० में से चार गर्भवती महिलाओं को गर्मियों में ऐसी तकलीफ होती है।
डॉ. पुनीत भार्गव, फिजिशियन, एसएमएस, जयपुर