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रिसर्च में हुआ खुलासा: भारत में जड़ से नहीं खत्म हो सकती ये महामारी, वजह जानकर उड़ जाएंगे होश

locationजयपुरPublished: Sep 28, 2018 11:58:19 am

Submitted by:

dilip chaturvedi

स्टडी में पाया गया कि इस महामारी को जड़ से खत्म करने की जंग में सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहे हैं प्राथमिक उपचार करने वाले फिजीशियन…

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भारत में प्राइवेट हास्पिटल और वहां के डॉक्टरों को लेकर जो के्रज है, उसके बारे में यहां ज्यादा बताने की जररूत नहीं है, लेकिन यहां ऐसे लोगों को यह जानना जरूरी हो जाता है कि निजी क्षेत्र के कई डॉक्टरों को एक गंभीर बीमारी के लक्षणों की पहचान करना नहीं आता। ये गंभीर बीमारी है टीबी। जी हां, आपको इस बात पर यकीन नहीं होगा, लेकिन हाल ही एक रिसर्च के आधार जो रिपोर्ट जारी की गई है, उसमें इस बात का दावा किया गया है कि निजी क्षेत्र के कई डॉक्टर क्षयरोग (टीबी) के लक्षण नहीं पहचान पाते और इस वजह से मरीजों का उचित उपचार नहीं हो पाता।

इस अध्ययन में उन लोगों को शामिल किया गया, जो इस बीमारी के लक्षण दिखाने का अभिनय कर सकें। टीबी हवा से फैलने वाला संक्रामक रोग है जो भारत, चीन और इंडोनेशिया समेत कई अन्य देशों में जन स्वास्थ्य का एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 2017 में इस बीमारी के चलते 17 लाख लोगों की जान गई थी और इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए २६ सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में एक वैश्विक स्वास्थ्य सम्मेलन आयोजित किया गया।

गौरतलब है कि इस महामारी को खत्म करने की जंग में कमजोर कड़ी प्राथमिक उपचार करने वाले फिजीशियन हैं, जो मरीज को एकदम शुरुआत में देखते हैं, जब उन्हें खांसी आना शुरू होती है। अध्ययन में कहा गया कि कम से कम दो शहर मुंबई महानगर और पूर्वी पटना में तो निश्चित तौर यह स्थिति है।

इस प्रयोग के लिए वित्तीय प्रबंध बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने किया। यह अध्ययन 2014 से 2015 के बीच करीब 10 महीनों तक मैकगिल यूनिवर्सिटी, विश्व बैंक और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने किया। मरीज बनाकर पेश किए गए 24 लोग 1,288 निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के पास गए। इन्होंने साधारण बलगम से लेकर ऐसा बलगम निकलने के लक्षण बताए जिससे लगे कि वह ठीक होकर फिर से बीमार हो गए हैँ।

बातचीत के 65 प्रतिशत मामलों में चिकित्सकों ने जो आकलन किए वे स्वास्थ्य लाभ के भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे नहीं उतरते। इनमें दोनों तरह के डॉक्टर शामिल थे – योग्य, अयोग्य एवं वे जो पारंपरिक दवाओं से उपचार करते हैं। अध्ययन के परिणाम ‘पीएलओएस मेडिसिनà पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

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