कुछ लोग नींद की दवा खाकर सोते हैं, लेकिन असल में यह एक नशा ही है। ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें 6 घंटे या इससे भी कम नींद की जरूरत होती है। इसमें भी वे खुद को तरोताजा महसूस करते हैं। उनकी सेहत पर भी असर नहीं पड़ता। ऐसे लोगों की जनसंख्या एक से पांच फीसदी ही है। ये गुण इनमें आनुवांशिक रूप से आते हैं। सामान्यत: मनुष्य को 7-8 घंटे की नींद तो लेनी ही चाहिए।
बहुत से लोग अपने कामकाज के चक्कर में सोमवार से शुक्रवार तक अपनी नींद के कुछ घंटों की बलि चढ़ा देते हैं और फिर वीक ऑफ के दिन इस नींद को पूरा कर लेना चाहते हैं, लेकिन इससे नींद की भरपाई नहीं हो पाती है।
गर्भावस्था के दौरान महिला में होने वाले बदलाव नींद की जरूरत बढ़ा सकते हैं। हालांकि उल्टी, बार-बार यूरीन आना, कमर में दर्द होना, पैरों में ऐंठन जैसे लक्षण कई बार सोना मुश्किल कर देते हैं और उनकी नींद टूटती रहती है।