चार मिलीग्राम की डोज देते थे वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों ने जो टीका लैब में तैयार किया था उसकी चार मिलीग्राम की डोज दी जाती थी जिसे डीएनए के एक छोटे से टुकड़े जैसा होता था। खास बात ये थी कि हर बार नई डोज तैयार होती थी।
लोग कहते थे हमें नहीं चाहिए जीका वायरस
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में जीका वैक्सीन के परीक्षण के लिए लोगों से संपर्क किया गया वैज्ञानिक उनके जवाब से हैरान रह गए। एनआइएच के वैज्ञानिक जूली लेजरवुड कहते हैं कि एक लोग से हमने बात की और पूरी तरह से उन्हें आश्वस्त किया उसके बाद हमें जवाब मिला ‘कोई जीका वायरस नहीं है वैक्सीन से जीका हो जाएगा’।
जिनपर परीक्षण उनकी हर हरकत पर नजर
परीक्षण में शामिल लोगों को जब जीका वैक्सीन की डोज दी जाती थी तो वैज्ञानिकों की टीम उनकी हर हरकत पर नजर रखती थी। टीका लगने के बाद शरीर का तापमान, हाथ दर्द, सिर दर्द, सुस्ती और घबराहट जैसे लक्षणों पर अधिक ध्यान दिया जाता था। परीक्षण में शामिल लोगों का बार-बार खून लिया जाता था इसलिए उनकी सेहत की जांच भी नियमित कराई जाती थी जिससे रक्त संबंधी संक्रमण का खतरा न रहे। अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के निदेशक एंथनी फॉसी का कहना है कि जो महिलाएं और पुरुष इस परीक्षण के लिए तैयार हुए उन्होंने एक सराहनीय काम किया है और भविष्य में इसका फायदा पूरी दुनिया को मिलेगा।