इससे हृदय और दिमाग की ओर जाने वाली रक्तवाहिकाओं में वसा का निर्माण होने लगता है। धमनियां संकुचित होकर अवरुद्ध हो जाती हैं और इन दो महत्त्वपूर्ण अंगों में रक्त का प्रवाह धीमा या रुक जाता है। अच्छा कोलेस्ट्रॉल या उच्च घनत्व वाला लिपोप्रोटीन (एचडीएल) हार्ट अटैक से बचाता है। यह धमनियों से कोलेस्ट्रॉल को निकाल देता है और इसे वापस लिवर में ला देता है।
1- रेशे वाले खाद्य पदार्थ हैं उपयोगी
हमारा शरीर जरूरत के हिसाब से कोलेस्ट्रॉल का निर्माण करता है। लिवर और आंत इसे संश्लेषित (सिंथेसिस) करने में मदद करते हैं। हमें डाइट में बहुत कम (300 मिलिग्राम) वसा की जरूरत होती है। उच्च रेशेदार भोजन कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण रखता है इसलिए साग-सब्जियां, फल, अनाज व अखरोट को डाइट में शामिल करें। खाना बनाने के लिए मूंगफली व सरसों का तेल बेहतर उपाय हैं लेकिन इनका प्रयोग सीमित मात्रा में ही करना चाहिए।
2. घबराएं नहीं
कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक जोखिम का संकेत नहीं है। लेकिन उम्र, लिंग, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, धूम्रपान की आदत या खराब जीवनशैली इसे प्रभावित करते हैं और हृदय रोगों का खतरा बढ़ाते हैं। एलडीएल का स्तर अधिक होने पर स्टेंटिन्स (एक प्रकार की दवाओं का समूह) से इस पर नियंत्रण किया जाता है।
3- सावधानी रखें
उम्र के साथ-साथ महिलाओं में कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। किसी एक निश्चित उम्र में पुरुषों की तुलना में महिलाओं (मेनोपॉज से पहले) में कम एलडीएल व ज्यादा एचडीएल होता है। मेनोपॉज के बाद कुछ महिलाओं में काफी बदलाव आते हंै जिसमें एस्ट्रोजन हार्मोन भूमिका निभाता है। इसलिए पुरुषों व महिलाओं को सावधानी रखनी चाहिए।
4- कसरत है मददगार
नियमित व्यायाम से बुरा कोलेस्ट्रॉल कम होता है व अच्छा कोलेस्ट्रॉल बनता है। एक शोध के अनुसार रोजाना 20 मिनट व्यायाम से आपका एचडीएल 2.5 पॉइंट बढ़ सकता है। साथ ही इसमें अगर रोजाना 10 मिनट और जोड़ दिए जाएं तो एचडीएल में अतिरिक्त 1.4 पॉइंट बढ़ सकते हैं।
5- ट्राइग्लिसराइड्स
ट्राइग्लिसराइड्स भी कोलेस्ट्रॉल जैसी वसा के अवयव हैं। ये अनुपयोगी कैलोरी को एकत्र कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हंै। जब हम खाना खाते हैं तो शरीर बची कैलोरी को ट्राइग्लिसराइड्स में बदल देता है। बाद में हार्मोंस ट्राइग्लिसराइड्स को ऊर्जा देने के लिए स्त्रावित करते हैं। जब हम जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेते हैं तो ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर बढऩे से हृदय रोगों, सांस संबंधी तकलीफ, मधुमेह और हाइपोथायरॉइडिज्म, हाइपर ट्राइग्लिसरीडेमिया की आशंका बढऩे लगती है। भारतीयों में उच्च स्तर का ट्राइग्लिसराइड अधिक पाया जाता है। यह आनुवांशिक रूप से होता है और इसके लक्षण मोटापे के रूप में दिखाई देते हैं।