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गर्भावस्था में महिलाओं को ज्यादा परेशान करती हैं ये समस्याएं

locationजयपुरPublished: Apr 08, 2019 02:44:40 pm

आइये जानते हैं गर्भावस्था से जुड़ें कुछ रोगों और उनसे जुड़ी जटिलताओं के बारे में।

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आइये जानते हैं गर्भावस्था से जुड़ें कुछ रोगों और उनसे जुड़ी जटिलताओं के बारे में।

कुछ महिलाएं बिना जटिलताओं के गर्भावस्था के सभी चरण पार कर लेती हैं लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ माताओं को संक्रमण से जूझना पड़ता है जो उनके साथ-साथ नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल देता है। विभिन्न जटिलताओं में पोलियो, सेरेब्रल पाल्सी, समय से पहले जन्म, प्रीक्लेम्पसिया, क्लबफुट और पेट दर्द आदि के नाम लिए जा सकते हैं। आइये जानते हैं गर्भावस्था से जुड़ें कुछ रोगों और उनसे जुड़ी जटिलताओं के बारे में।

1. सेरेब्रल पाल्सी :

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सेरेब्रल पाल्सी की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 33,000 लोगों को मस्तिष्क पक्षाघात है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर हर 500 जीवित जन्म पर सेरेब्रल पाल्सी का 1 मामला सामने आता है। भारत में सेरेब्रल पाल्सी के 14 में से 13 मामले गर्भावस्था या जन्म के बाद पहले महीने में होते हैं।

वास्तव में, गर्भावस्था के पहले दिन से लेकर अंत तक मां और बच्चा साथ बढ़ते हैं, साथ सोते हैं और साथ खाते हैं। यह वह दौर है, जब मां को कई तरह के तनाव और दर्द से गुजरना होता है, गर्भावस्था के दौरान ऐसे कई लक्षण हैं जो विकसित हो रहे शिशु के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकते हैं और आगे चल कर प्रमस्तिष्क पक्षाघात का कारण बन सकते हैं।

सेरेब्रल पाल्सी के विभिन्न प्रकार होते हैं। जैसे कि स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी, डिस्किनेटिक सेरेब्रल पाल्सी, मिक्सड और अटैक्सिक सेरेब्रल पाल्सी।

2. समय पूर्व जन्म :

प्रीटर्म बेबी वह है जो गर्भावस्था के 24वें-37वें सप्ताह के बीच पैदा होता है। अन्य रिपोर्ट के साथ प्रीटर्म बर्थ पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल एक्शन रिपोर्ट कहती है कि भारत में समय से पहले जन्म दर 3,519,100 है और कुल संख्या का लगभग 24 प्रतिशत। आंकड़ों को देखते हुए, भारत 60 फीसदी के साथ समयपूर्व जन्म में दुनिया के शीर्ष 10 देशों में सबसे ऊपर है।

इस जटिलता से बचने के लिए विशेषज्ञीय सलाह यह दी जाती है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए जाना चाहिए और समुचित गतिविधि बनाए रखने के लिए जीवन शैली में बदलावों पर चिकित्सकीय सलाह का पूरे तौर पर पालन करना चाहिए।

3. प्रीक्लेम्पसिया:

गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया शिशु के विकास को धीमा कर देता है। गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद उच्च रक्तचाप का पता चलने पर प्रोटीन्यूरिया यानी यूरिन में प्रोटीन प्रीक्लेम्पसिया का कारण हो सकता है।

इसके कई लक्षण है, जैसे प्रीक्लेम्प्लेसाइक सिरदर्द, मतली, सूजन, पेट दर्द और देखने में परेशानी आदि। अगर समय पर निदान किया जाता है, तो मां को उपचार मिल सकता है, अन्यथा यह यकृत की विफलता और हृदय संबंधी समस्याओं जैसी गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।

4. क्लबफुट :

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली और तनाव के कारण गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चे और भी अनेक असामान्यताओं के शिकार हो रहे हैं। ऐसी असामान्यता में से एक क्लबफुट है जो एक जन्मजात आथोर्पेडिक विसंगति है। यह एक जन्मजात विकलांगता भी है, जिसमें पैर अंदर या बाहर की तरफ मुड़ा हुआ होता है।

क्लबफुट के कारण हालांकि, स्पष्ट नहीं हैं पर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह गर्भ में एम्नियोटिक द्रव की कमी के कारण है। ध्यान देने योग्य यह है कि एम्नियोटिक द्रव फेफड़ों, मांसपेशियों और पाचन तंत्र के विकास में मदद करता है। अंत में, जिन लोगों का पारिवारिक इतिहास इस स्थिति को विकसित करने का रहा है, वे उच्च जोखिम में हैं, इसलिए महिलाओं को पहले से सावधान रहते हुए नियमित स्वास्थ्य जांच करवानी चाहिए।

5. हृदय दोष:

इनमें वे जन्मजात हृदय विकार हैं, जो हृदय या प्रमुख रक्त वाहिकाओं के असामान्य गठन से संरचनात्मक समस्याओं का कारण बनता है। विभिन्न प्रकार के जन्मजात हृदय दोष होते हैं जैसे सेप्टल डिफेक्ट, एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट, कंपलीट एट्रियोवेंट्रीकुलर कैनाल डिफेक्ट (सीएवीसी), और वाल्व डिफेक्ट। गर्भावस्था के दौरान, हृदय में इन दोषों के साथ बच्चे का जन्म हो सकता है। डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान इन विकारों की पहचान कर सकते हैं लेकिन बच्चे के जन्म से पहले निदान संभव नहीं है।

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