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ऐसे करें ब्रेन अटैक के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान

Published: Dec 23, 2015 08:32:00 am

मस्तिष्क की बीमारियों में करीब एक चौथाई लोग ब्रेन अटैक के कारण जान गंवाते हैं, यदि इसका समय रहते इलाज हो जाए तो व्यक्ति बिल्कुल ठीक हो सकता है

Brain habit

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ब्रेन अटैक भी हार्ट अटैक की तरह जानलेवा बीमारी है। मस्तिष्क की बीमारियों में करीब एक चौथाई लोग इसकी वजह से जान गंवाते हैं। यदि इसका समय रहते इलाज हो जाए तो व्यक्ति बिल्कुल ठीक हो सकता है। ब्रेन स्ट्रोक दो तरह के होते हैं। 
1- पूर्णावरोधक (इस्कीमिक) स्ट्रोक : इसमें दिमाग के अंदर धमनी में खून का थक्का जमने से दिमाग के विशिष्ट भाग में रक्त प्रवाह बंद हो जाता है। इसका इलाज प्राथमिक तौर पर न्यूरोफिजिशियन करते हैं।
2- रक्तस्त्रावी (हेमरेजिक) स्ट्रोक : इसमें दिमाग में ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। इसके मरीजों का इलाज न्यूरोसर्जन करते हैं। इलाज के दौरान न्यूरोसर्जन के साथ न्यूरोरेडियोलॉजिस्ट, न्यूरोएनेस्थेटिस्ट, न्यूरोइंटरवेंशनिस्ट और रिहेबिलिटेशन एक्सपर्ट की जरूरत भी होती है। 

पूर्णावरोधक स्ट्रोक 
हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल व हृदय रोग से पीडि़त मरीजों के अलावा ऐसे लोग जिन्हें तम्बाकू, शराब व धूम्रपान की लत हो, उनमें इसकी आशंका अधिक रहती है। एक तरफ के हाथ या हाथ व पैर दोनों में कमजोरी, बोलने में तकलीफ और बेहोशी इसके प्रारंभिक लक्षण माने जाते हैं। 

इसका इलाज शुरू करने से पहले मरीज की पूरी जानकारी उससे या उसके परिजनों से ली जाती है। इसके बाद उपचार के तौर पर सबसे पहले खून की जांचें की जाती हैं। इसके बाद दिमाग का सीटी स्कैन, एमआरआई, दिमाग में खून ले जाने वाली धमनियों का डॉप्लर, एंजियोग्राम व इकोकार्डियोग्राफी टैस्ट भी किए जाते हैं। ब्रेन अटैक का इलाज विशेष प्रकार के आईसीयू या स्ट्रोक केयर यूनिट में किया जाता है। इस दौरान मरीज को खून के थक्के को तोड़कर घोलने वाली व प्लेटलेट विरोधक दवाएं दी जाती हैं। दवाओं द्वारा खून में कोलेस्ट्रॅाल की मात्रा कम की जाती है साथ ही जरूरत होने पर दिमाग की धमनियों में स्टेंट भी डाले जा सकते हैं। 
हल्के व मध्यम दर्जे के स्ट्रोक से पीडि़त मरीजों में ठीक होने की उम्मीद अधिक होती है। इसका इलाज लेने वाले करीब 95 प्रतिशत मरीजों में 11 सप्ताह के आसपास बहुत अच्छा सुधार दिखाई देने लगता है। लेकिन कई मरीजों के ठीक होने में 2 वर्ष या इससे ज्यादा समय भी लग सकता है।

रक्तस्त्रावी स्ट्रोक 
इसका सबसे बड़ा कारण एन्यूरिज्म है। एन्यूरिज्म खून की धमनी के कमजोर हिस्से से निकला एक गुब्बारानुमा होता है जिसकी परत काफी कमजोर होती है। यदि एन्यूरिज्म फट जाए तो यह दिमाग में ब्लीडिंग कर देता है। इसे ही रक्तस्त्रावी स्ट्रोक कहते हैं। भारत में एक लाख व्यक्तियों में करीब 2 लोगों में एन्यूरिज्म फटने की आशंका होती है। यदि समय पर इलाज न मिले तो स्थिति गंभीर या जानलेवा हो सकती है। इसलिए इसके लक्षणों को समय पर पहचान कर मरीज को अस्पताल भेजना आवश्यक होता है। एन्यूरिज्म के फटने पर इसके मरीजों में तेज सिरदर्द, बेहोशी, मिर्गी का दौरा, शरीर का एक तरफ का हिस्सा काम करना बंद कर सकता है साथ ही बोलने में व दूसरों के कहे को समझने में दिक्कत आ सकती हैं। कई बार एन्यूरिज्म दिमाग में बिना फटे ही बढ़ता रहता है। ऐसे में सिर दर्द, मिर्गी, एक तरफ नजर में कमजोरी, आंख का बंद हो जाना और आंख हिलाने में तकलीफ और समझने में परेशानी के रूप में भी लक्षण सामने आते हैं।

न बरतें लापरवाही
जोधपुर के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन डॉ. एस. एन. मथुरिया का कहना है कि एन्यूरिज्म एक ऐसी समस्या है जिसका समय पर इलाज जरूरी है वर्ना स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। इसका ऑपरेशन द्वारा इलाज कोई जटिल तकनीक नहीं है, लेकिन इसके लिए सक्षम ट्रेनिंग व प्रयास की आवश्यकता है। इसके ऑपरेशन, कोईलिंग व स्टेंटिंग की सुविधा जयपुर में भी उपलब्ध है। 

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