रोग और उपचार

टीका देगा गर्भाशय के कैंसर से मुक्ति

ज्यादातर मामलों की शुरुआत में गर्भाशय के मुंह के कैंसर की पहचान नहीं हो पाती और स्थिति बिगड़ने पर यह मौत का कारण बनता है।

जयपुरNov 23, 2018 / 05:55 pm

विकास गुप्ता

ज्यादातर मामलों की शुरुआत में गर्भाशय के मुंह के कैंसर की पहचान नहीं हो पाती और स्थिति बिगड़ने पर यह मौत का कारण बनता है।

भारतीय महिलाओं में सर्वाइकल (गर्भाशय का मुंह) कैंसर एक बड़ी बीमारी है। इसे सामान्य बोलचाल में बच्चेदानी के मुंह का कैंसर कहा जाता है। ज्यादातर मामलों में शुरुआत में इसकी पहचान नहीं हो पाती और स्थिति बिगड़ने पर यह मौत का कारण बनता है। वैसे तो इसके कई कारण होते हैं, लेकिन ह्यूमन पेपिलोमा वायरस से होने वाला यौन संक्रमण इसकी प्रमुख वजह है। अच्छी बात यह है कि इससे बचने के लिए टीके आ चुके हैं, जो इसकी रोकथाम में अहम भूमिका निभाते हैं।

क्या है सर्वाइकल कैंसर –
सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती दिनों में कोई लक्षण नहीं दिखता। कुछ लक्षण ऐसे हैं जिनके होने पर विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। ये लक्षण माहवारी की अनियमितता, मासिक धर्म के दिनों के अलावा भी रक्त आना, ज्यादा दिनों तक ज्यादा मात्रा में माहवारी आना, रजोनिवृति के बाद भी लगातार पीरियड आना, शारीरिक संबंध के समय दर्द व रक्त स्राव होना, गंदा पानी आना, पेट के नीचे व कमर में दर्द बने रहना आदि हैं।

कब है कारगर –
युवावस्था में कभी भी महिलाएं टीके लगवा सकती हैं। टीके शारीरिक संबंध स्थापित होने से पहले लगा दिए जाएं तो ज्यादा कारगर हैं, क्योंकि इस वायरस का संक्रमण शारीरिक संबंध के दौरान होता है। टीके 9 से 11 वर्ष की उम्र में लगा दिए जाएं तो आगे इस बीमारी के खतरे से बचा जा सकता है। इस वायरस का संक्रमण होने के बाद टीके बेअसर रहते हैं। इसका मतलब यह है कि टीके रोकथाम में तो सहायक हैं, लेकिन रोग को ठीक करने में नहीं।

विशेषज्ञ की सलाह लें –
सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए गार्डसिल और सरवैरिक्स दो वैक्सीन हैं। इनमें से कोई भी टीका लगवा सकती हैं। टीके की पहली डोज के एक माह बाद दूसरी व छह माह बाद तीसरी डोज दी जाती है। टीकों को स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में लगाना चाहिए। गर्भवती होने पर व जटिल रोगों में इन्हें नहीं लगाया जाना चाहिए।

कीमत ज्यादा –
इन टीकों के साढ़े चार साल पहले आने के बावजूद इनके बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। टीके कम लगाने की वजह इसकी कीमत भी है, क्योंकि एक टीके का बाजार मूल्य करीब ढाई हजार रुपए है।

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