आयुर्वेद की दवाएं जैसे जड़ी-बूटी आदि खरीदते हैं तो समझदारी इसी में है कि आयुर्वेद विशेषज्ञ को दिखाने के बाद ही इन दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे में उसकी गुणवत्ता की पुष्टि हो सकेगी और गलत दवा के नुकसान से भी आप बच पाएंगे।
अगर डिब्बाबंद दवा खरीद रहे हैं तो आप उस दवा की एक्सपायरी डेट, आयुर्वेदिक औषधि, जीएमपी सर्टिफाइड कंपनी, आयुष मार्क ‘एक गुणवत्ता प्रतीक’ देखकर ही खरीदें। दवा के डिब्बे पर फूड सप्लीमेंट, खाद्य पदार्थ या ‘प्रिस्क्राइब बाय डाइटीशियन’ या ‘हैल्थ केयर प्रोफेशनल’ नहीं लिखा होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें।
दवाएं को सूखी जगह पर रखें जहां का तापमान २५ डिग्री सेंटीगे्रट से ज्यादा नहीं होना चाहिए ताकि उसकी गुणवत्ता बरकरार रह सके। औषधि को अंधेरे में रही रखें ताकि सूर्य की किरणें न पड़ें।
इसे एयर-टाइट जार या कंटेनर में रखें ताकि दवाएं हवा, ऑक्सीजन और धूल के कण, कीटाणु-जीवाणु से प्रभावित न हों।
अगर किसी औषधि के भौतिक रूप में कोई परिवर्तन जैसे रंग, गंध, स्वाद, झाग का बनना (सिरप में), गैस का बनना, बोतल का पिचकना (सिरप में), गोले बनना (चूर्ण/पाउडर में) आदि दिखे तो दुकानदार से शिकायत करें। या वैद्य की सलाह के अनुसार ही इस्तेमाल करें।