योजना के लाभ से दूर, कैंसर के उपचार के लिए भटकने को मजदूर
गरीबी में जीवन यापन कर रहा परिवार
शासन-प्रशासन से मदद की आस
डूंगरपुर
Published: April 28, 2022 10:47:36 am
धम्बोला (डूंगरपुर).
सरकार द्वारा आमजन की सुविधाओं के लिए कई योजनाएं चलाई जाती है। इसके बावजूद कई बार विपरित परिस्थियों के कारण पात्र लोगों को भी इनका लाभ नहीं मिला पाता है। ऐसे में जानकारी के अभाव में जरूरतमंद लोग मजबूरन संघर्ष करते रहते है। जिले के पाडली गुजरेश्वर में ऐसा ही एक परिवार है जो माली हालत ठीक नहीं होने के साथ ही योजनाओं के लाभ से भी वंचित है। दरअसल, पाडली गुजरेश्वर निवासी कविता पत्नी राकेश रावल लम्बे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रही है। कविता के बीमार होने पर ईलाज के लिए पैसे नहीं होने से पति राकेश उसे सीमलवाड़ा में उसके पिता के घर छोड़ गया। गरीबी में जीवन यापन कर रहे पिता ने गहने गिरवी रखकर रुपए जुटाए और कविता का उपचार शुरू करवाया। अब तक कविता के पिता करीब चार लाख रुपए खर्च कर चुके है लेकिन कविता के स्वास्थ्य में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में कविता खाद्य सुरक्षा में नाम जुड़वाने और चिरंजीवी योजना के माध्यम से सरकारी मदद की मांग कर रही है।
परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय
कैंसर पीडि़ता कविता का विवाह 2016 में पाडली गुजरेश्वर में हुआ था। वह पति राकेश और दो बेटियों के साथ कच्चे मकान में रह रही थी। उसे पीएम आवास का लाभ भी नहीं मिला। वहीं राशन कार्ड भी एपीएल होने से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। पति मजदूरी कर पालन पोषण करता है। उसकी एक बेटी तीन वर्ष और दूसरी चार माह की है। कविता के पिता लक्ष्मण रावल भी मजदूरी करती है वहीं माता लोगों के घरों में काम करती है। कविता के पिता की पांच संतानें है जिसमें चार बेटियां और एक बेटा है। तीन बेटियों का विवाह हो चुका है वहीं एक छोटी बेटी कक्षा सातवीं तो एक पुत्र कक्षा पहली में अध्ययनरत है।
चार लाख खर्च होने के बाद पता चला कैंसर
धंबोला. हाल में सीमलवाड़ा के रावल बस्ती मं पिता के घर रह रही कविता को करीब एक वर्ष पूर्व पेट में दर्द की शिकायत पर मोडासा के निजी अस्पताल में ले जाया गया था। वहां पथरी होना बताकर ऑपरेशन की बात कही थी। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से परिजन कविता को डूंगरपुर के राजकीय अस्पताल में लेकर पहुंचे जहां पथरी नहीं होने की बात कहते हुए डॉक्टरों ने दवा देकर घर भेज दिया। करीब तीन महीने राहत होने के बाद फिर से कविता को दर्द उठा। ऐसे में परिजन कभी गुजरात तो कभी राजस्थान के करीब दर्जनों निजी और सरकारी अस्पतालों में भटके। कई बार सोनोग्राफी कर जांच की गई। रक्त चढ़ाया गया। दो बार गांठ निकालने के नाम पर ऑपरेशन किए गए। बड़ौदा के एक अस्पताल में चार दिन भर्ती रखकर कविता का ऑपरेशन कर गांठ निकाली गई। इसमें करीब ढाई लाख रुपए खर्च हुए। ऑपरेशन के 15 दिनों बाद कविता को घर भेज दिया गया। कुछ दिनों बाद वापस टांके खुलवाने और जांच के लिए कविता को बड़ौदा ले गए जहां डॉक्टर ने जांच के आधार पर कैंसर होने का अंदेशा जताया। इलाज में खर्च ज्यादा आने की बात कहते हुए बताया कि जन आधार कार्ड होने पर राजस्थान में कविता का इलाज संभव है। परिजन उसे उदयपुर के एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे लेकिन खाद्य सुरक्षा में नाम नहीं जुड़ा होने से मुफ्त इलाज नहीं किए जाने की बात कही। आज के समय में पीडि़ता के पास दो वक्त के भोजन के पैसे तक नहीं है। ऐसे में उसने खाद्य सुरक्षा में नाम जुड़वाने की मांग की है। ताकि सरकारी योजना के तहत उसका उपचार हो सके।

योजना के लाभ से दूर, कैंसर के उपचार के लिए भटकने को मजदूर
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