डूंगरपुर

हर रोज ढाई करोड़ रुपए का धुंआ करता था डूंगरपुर, लॉकडाउन से रह गया महज 10 फीसदी

वाहनों की रफ्तार थमी तो पेट्रोल-डीजल की खपत भी कम, लॉकडाउन के चलते घरों में दुबके हैं लोग, पेट्रोल पंपों पर सन्नाटा

डूंगरपुरApr 03, 2020 / 05:19 pm

milan Kumar sharma

हर रोज ढाई करोड़ रुपए का धुंआ करता था डूंगरपुर, लॉकडाउन से रह गया महज 10 फीसदी

डूंगरपुर. प्रदेश और देश के आर्थिक जिलों में अग्रिम पंक्ति में खड़े डूंगरपुर जिले के लिए भले ही यह आश्चर्य समझा जाए लेकिन, यह हकीकत है कि डूंगरपुर जिला हर रोज औसत ढाई करोड़ रुपए से अधिक का ईंधन वाहनों में फूंक देता है। कोरोना संक्रमण के चलते सरकारों की ओर से लगाए गए लॉकडाउन के चलते सरकारी वाहनों को छोड़ शेष सभी दुपहिया एवं निजी बसों, कारों आदि की रफ्तार थम गई है। इससे पेट्रोल-डीजल पंपों पर भी अमूमन दिनभर सन्नाटा पसरा ही नजर आ रहा है। आवश्यक सेवाओं के तहत पेट्रोल-डीजल पंप खुले तो जरूर है कि लेकिन, स्थितियां यह है कि इन पंपों पर बमुश्किल ही इक्का-दुक्का वाहन आ रहे हैं। ऐेसे में अपने वाहनों में हर रोज ढाई करोड़ से अधिक का पेट्रोल-डीजल भरवाने वाला डूंगरपुर में अभी बमुश्किल साढ़े 25 लाख रुपए के डीजल और पेट्रोल की ही खपत हो रही है।

वाहनों की रफ्तार पर इतना खपता है ईंधन
डंूंगरपुर जिले में विभिन्न पेट्रोलियम कम्पनी के शहर सहित जिले भर में 60 पेट्रोल पंप हैं। इन पेट्रोल और डीजल पंपों पर आम दिनों में औसत 20 हजार लीटर पेट्रोल तथा 40 हजार लीटर डीजल की औसत प्रतिदिन खपत होती है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के चलते प्रदेश सहित देश भर में लॉकडाउन लगाने के बाद स्थितियां बिल्कूल विपरित हो गई है। अब यह खपत काफी कम रह गई है। स्थितियां यह है कि पूरे जिले में 10 से 15 हजार लीटर पेट्रोल और 15 से 20 हजार लीटर डीजल की भी बमुश्किल खपत हो रही है।

रुपए में समझिए गणित
आमदिनों में डूंगरपुर में प्रतिदिन औसत 20 हजार लीटर पेट्रोल की खपत होती है, तो फिलहाल पेट्रोल के दाम 76.96 रुपए प्रति लीटर है। इस हिसाब से प्रतिदिन 92 लाख 35 हजार से अधिक रुपए का पेट्रोल खप जाता है। वहीं, डीजल की बात करे तो इसकी खपत औसत 40 हजार लीटर प्रतिदिन की है। डीजल फिलहाल 70.57 रुपए प्रतिलीटर मिल रहा है। इस हिसाब से इसके दाम एक करोड़ 69 लाख 36 हजार 800 रुपए पार पहुंचते हैं। दोनों को मिलाकर यह राशि दो करोड़ 61 लाख 72 हजार रुपए पार जाती है। जबकि, इन दिनों पेट्रोल-डीजल की खपत से इसकी तुलना करें, तो इन दिनों बमुश्किल 25 लाख रुपए का कारोबार हो रहा है।

दूसरा पहलू: पर्यावरण का संबल
– पत्रिका व्यू
वाहनों की रफ्तार थमने से पर्यावरण को सम्बल जरूर मिला है। वाहनों से निकलने वाले धुएं एवं हानिकारक तत्वों से पेड़-पौधों का विकास तो अवरुद्ध होता ही है। यह मानव जीवन पर भी खासा प्रभाव डालते हैं। वाहनों से निकलने वाला हानिकारक धुआं न सिर्फ वायुमंडल में फैलता है। बल्कि सांसों के साथ घुलकर शरीर भी खोखला करता है। अध्ययन बताते है कि डीजल वाहन बड़े पैमाने पर जानलेवा कण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, जो दमा, ब्रोंकाइटिस, दिल के दौरे और बच्चों में विकास संबंधी विकार उत्पन्न करते हैं। वहीं, डीजल में मौजूद सल्फर नामक धातु सल्फर डाइऑक्साइड का निर्माण करता है, जो नाक, गले और सांस की नली में अवरोध उत्पन्न करता है। इससे खांसी, छींक और सांस की समस्या होती है। पेट्रोल वाले वाहन डीजल के मुकाबले ज्यादा कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं।

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