उमस भरी गर्मी के बीच दोपहर के समय पथरीली जमीन पर बिना कपड़े के लिटाई इस फुल जैसी बच्ची की पुकार वहां से गुजर रहे ग्रामीणों के कानों पर पड़ी। लोगों ने तत्काल आसपास उगे ढाक के पेड़ों से पत्ते तोड़ कर पहले तो बच्ची को पत्तों में लपेटा। इस बीच पास के मकान से कोई कपड़ा ले आया तो बच्ची को पत्तों के बिछाने पर कपड़े में लपटे कर सुलाया। सूचना मिलने पर देवल चौकी प्रभारी गिरीराजसिंह मय जाप्ता मौके पर पहुंचे। चाइल्ड लाइन को भी जानकारी दी गई। १०८ एम्बुलेंस बुलवाकर बच्ची को जिला अस्पताल पहुंचाया। नवजात को एफबीएनसी यूनिट में भर्ती कराया है। चाइल्ड लाइन सदस्य हितेश जैन, जयदीप जैन एवं रामसिंह भी अस्पताल पहुंचे। बाल कल्याण समिति की देखरेख में बच्ची का अस्पताल में उपचार किया
जा रहा है।
प्रीमैच्योर, सांस लेने में भी तकलीफ
शिशु रोग विशेषज्ञ डा. कल्पेश जैन का कहना है कि बच्ची का जन्म छह से 12 घंटे के दरम्यान ही हुआ प्रतीत हो रहा है। यह प्री मैच्योर है तथा सात माह के गर्भ के बाद ही प्रसव हो गया है, इससे नवजात का वजन मात्र डेढ़ किलोग्राम है। बच्ची की स्थिति गंभीर बनी हुई है, उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही है। उपचार
चल रहा है।
छह माह में चौथी घटना
नवजात शिशुओं को असुरक्षित छोडऩे का पिछले छह माह में यह चौथा घटनाक्रम है। जनवरी माह में सतीरामपुर के समीप नवजात बच्ची झाडियों में बुरी तरह से जख्मी हालत में मिली थी। वहीं पिछले
माह सुरपुर मुक्तिधाम के पास एक नवजात तथा सप्ताहभर पूर्व शहर में निजी सोनोग्राफी सेंटर के
पीछे भी एक नवजात लावारिस हालत में मिला था।
छोडऩा है तो पालने में छोड़ो
शिशुओं को लावारिस छोडऩे से उसके जीवन पर संकट बढ़ जाता है। इसी के चलते सरकार ने जगह-जगह पालनाघर स्थापित किए हैं। जिला अस्पताल परिसर में भी मातृ शिशु अस्पताल के बाहर पालना लगा हुआ है। डा. कल्पेश जैन का कहना है कि पालने में शिशु रखने पर कुछ ही देर में अस्पताल स्टाफ को सूचना मिल जाती है तथा वह शिशु को संभाल लेते हैं, इससे शिशु की मृत्यु की संभावना खत्म हो जाती है। इसके अलावा पालने में शिशु रखने पर किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई भी नहीं की जाती है, लोग जानकारी के अभाव में बच्चों को झाडिय़ों आदि में डाल देते हैं, यह गलत है, ऐसा करने पर पुलिस कार्रवाई की जाती है।