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वागड़ की मटकी वागड़ तक अटकी

locationडूंगरपुरPublished: May 22, 2020 07:01:19 pm

Submitted by:

Harmesh Tailor

डूंगरपुर. गर्मी के तेवर दिनों दिन तीखे होते जा रहे हैं। ठण्डा पानी पीने की तलब बढ़ रही है। इस बीच कोरोना के खौफ के चलते लोग फ्रीज के ठण्डे पानी से यथासंभव किनारा कर रहे हैं। ऐसे में देसी फ्रीज यानि की मिट्टी से बनी परंपरागत मटकी की बहुत डिमाण्ड है, लेकिन वागड़ का यह देसी वाटर कूलर लॉकडाउन के चलते अपने गांव-कस्बों और शहर तक सीमित हो गया है। हर साल बांसवाड़ा और गुजरात के कई शहरों से आने वाले व्यापारी इस बार नहीं आ पाए हैं और न ही यहां के कुम्भकार बाहरी शहरों में उनकी आपूर्ति कर पा रहे हैं।

वागड़ की मटकी वागड़ तक अटकी

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वागड़ की मटकी वागड़ तक अटकी
– लॉकडाउन के चलते अन्य जिलों में नहीं हो पा रही आपूर्ति
– हर साल गुजरात के कई व्यापारी आते हैं लेने
डूंगरपुर.
गर्मी के तेवर दिनों दिन तीखे होते जा रहे हैं। ठण्डा पानी पीने की तलब बढ़ रही है। इस बीच कोरोना के खौफ के चलते लोग फ्रीज के ठण्डे पानी से यथासंभव किनारा कर रहे हैं। ऐसे में देसी फ्रीज यानि की मिट्टी से बनी परंपरागत मटकी की बहुत डिमाण्ड है, लेकिन वागड़ का यह देसी वाटर कूलर लॉकडाउन के चलते अपने गांव-कस्बों और शहर तक सीमित हो गया है। हर साल बांसवाड़ा और गुजरात के कई शहरों से आने वाले व्यापारी इस बार नहीं आ पाए हैं और न ही यहां के कुम्भकार बाहरी शहरों में उनकी आपूर्ति कर पा रहे हैं।
चार माह में होती थी हजारों मटकियों की बिक्री
टामटिया गांव में कुम्भकार समाज के ६५ परिवार हैं। इनमें से ३० परिवार मटकियां बनाने के पुश्तैनी काम से जुड़ कर आजीविका चला रहे हैं। प्रति वर्ष गर्मी के दिनों में मटकियों की ब्रिकी अधिक रहती है। इसलिए दिसम्बर माह से ही पूरा परिवार मटकियां बनाने में जुट जाता है। मार्च माह तक प्रति परिवार १५ हजार से अधिक मटकियां बना लेता है। मार्च से ब्रिकी शुरू जाती है और बारिश का दौर जमने तक चलती है। इन मटकियों को खरीदने के लिए डूंगरपुर सहित गुजरात के मोड़ासा, शामलाजी, भीलूडा व बांसवाड़ा के परतापुर, कुशलगढ सहित अन्य कस्बों के व्यापारी आते हैं। लेकिन, २२ मार्च से लागू लॅाकडाउन के चलते इस बार व्यापारी नहीं आ पाए और न ही मटकियों की आपूर्ति हो सकी। इस बार आधी से भी कम मटकियां बिकी हैं। कुम्भकार कुबेर भाई का कहना है मटकियां बनकर तैयार हैं लेकिन इस बार बड़े व्यापारी नहीं आ रहे हैं। जो आ रहे वह बहुत कम-कम मटकी ले जा रहे हैं।
उधार से चल रहा है घर
गांव के लालशंकर ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान मटकियों की बिक्री हर साल से बहुत कम हुई है। परिवार का पालन पोषण करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जैसे-तैसे उधारी में घर चला रहे हैं।
बच्चों को सिखाएंगे पुश्तैनी धंधा
गांव के कचरा भाई का कहनाहै कि युवा पीढ़ी को यह काम करने में शर्म महसूस होती है। विदेशों में कमाने जाते हैं। वर्तमान में जो हालात बने हैं इससे सबक लेने की जरूर है। बच्चों को पैतृक काम सिखाएंगे, ताकि परिवार का पालन पोषण तो चलेगा।
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