बीते साल दर साल, आखिर कब मिलेगा अधिकार
डूंगरपुरPublished: Apr 23, 2021 06:31:33 pm
डूंगरपुर (चीखली) . वर्षों से अपनी भूमि पर रहते आ रहे परिवारों को अबतक ना पट्टा मिल रहा और न ही उनकी जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हैं। दस्तावेज उपलब्ध कराने की मांग को यह परिवार कई वर्षों से उठाते आ रहे हैं, लेकिन अब तक इन्हें आगे की किसी भी प्रक्रिया में नहीं लिया गया हैं। डूंगरपुर जिले के चीखली तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत अंबाड़ा के घाटा पनवा एवं चक अंबाड़ा गांव में बसे परिवारों की स्थिति कमोबेश कुछ ऐसी ही है।
बीते साल दर साल, आखिर कब मिलेगा अधिकार
डूंगरपुर (चीखली) . वर्षों से अपनी भूमि पर रहते आ रहे परिवारों को अबतक ना पट्टा मिल रहा और न ही उनकी जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हैं। दस्तावेज उपलब्ध कराने की मांग को यह परिवार कई वर्षों से उठाते आ रहे हैं, लेकिन अब तक इन्हें आगे की किसी भी प्रक्रिया में नहीं लिया गया हैं। डूंगरपुर जिले के चीखली तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत अंबाड़ा के घाटा पनवा एवं चक अंबाड़ा गांव में बसे परिवारों की स्थिति कमोबेश कुछ ऐसी ही है।
सवा सौ से अधिक घरों की आबादी
घाटा पनवा व चक अंबाड़ा में करीब 125 के भी ज्यादा घरों की आबादी हैं। पट्टों की मांग को लेकर दफ्तरों में चक्कर लगाने के बावजूद इन परिवारों को राजस्व में कोई रिकॉर्ड नहीं होने से कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों की ओर से जिला परिषद, पंचायत समिति साधारण सभाओं से लेकर विधानसभा में हर बार यह मुद्दा उठाया जाता है लेकिन बात कभी उससे आगे बढ़ती ही नहीं हैं। राजस्व रिकॉर्ड में नहीं होने से शायद यह उक्त भूमि पर क्षेत्र वन विभाग डूंगरसारण का भी हो सकता हैं।
विधायक ने विधानसभा में भी उठाया मुद्दा
चौरासी विधानसभा में वर्षों से वन पट्टा अधिकार के लिए लोगों को भटकना पड़ रहा हैं। इसे लेकर विधायक राजकुमार रोत ने विधानसभा में मुद्दा उठाया हैं। बावजूद इसके कोई पहल नहीं हो पाई हैं। ऐसे में अब यह परिवार किसका का दरवाजा खटखटाए?
यह हैं नियम
वन अधिकार अधिनियम के तहत 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व वन भूमि का अधिभोग, आजीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भरता या निवासरत होना जरूरी हैं। ऐसा कोई सदस्य या समुदाय अभिप्रेत है, जो 13 दिसम्बर, 2005 से पूर्व कम से कम तीन पीढिय़ों तक प्राथमिक रूप से वन या वन भूमि में निवास करता रहता है और जो जीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए उन पर निर्भर है। पीढ़ी से 25 वर्ष की अवधि अभिप्रेत है। वहीं तत्कालिन समय में एफआरआई दर्ज होने चाहिए या अतिक्रमणधारी होने का साक्ष होना आवश्यक हैं।
जीपीएस फाइल पटवारी के पास
इस मामले में संबधित पटवारी को जीपीएस फाइल बनाकर ग्राम पंचायत को देनी होती हैं। लेकिन लंबे समय से जीपीएस फाइल पटवारी स्वयं लेकर घुम रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि पटवारी की ओर से जीपीएस फाइल ग्राम पंचायत को नहीं गई हैं। करीब पचास से अधिक जीपीएस फाइलें है। लेकिन पटवारी की ओर से लापरवाही बरती जा रही हैं।
मेरे द्वारा विधानसभा में सामूहिक तौर पर यह मुद्दा उठाया गया हैं। लेकिन धरातल की स्थिति से फाइल तैयार करने की आश्वयकता हैं। पूरे विधानसभा क्षेत्र में ऐसे कई परिवार हैं, जिन्हें अपना अधिकार नहीं मिला हैं। पीढिय़ां गुजर गई, लेकिन वन अधिकार के तहत मिलने वाले पट्टे नहीं मिले। निचले स्तर पर पटवारी, सरंपच, सचिव को इस मामले में अपनी रूचि दिखानी पड़ेगी। – राजकुमार रोत, विधायक चौरासी
यह परिवार राजस्व रिकॉर्ड में ही नहीं है। जीपीएस की करीब पचास फाइलें मेरे पास पड़ी हैं। मैने सरपंच को कहा हैं, ग्राम सभा में प्रस्ताव लेकर मेरे हस्ताक्षर कर जीपीएस फाइल ग्राम पंचायत को सौंपी जाएगी। – दिनेश यादव, पटवारी ग्राम पंचायत अंबाड़ा
पटवारी को कितने माह से जीपीएस की फाइलों के लिए कहा गया हैं, लेकिन हर बार टालमटोल करते आ रहे हैं। ग्राम पंचायत की ओर से इस मामले में हर बाद आवाज उठाई जा रही हैं। वन विभाग एवं उच्च अधिकारियों को इस मामले में अवगत कराते आ रहे हैं। – नवीन बामणिया, सरपंच ग्राम पंचायत अंबाड़ा
उक्त परिवार वन विभाग के क्षेत्र में आते हैं। लेकिन वन अधिकार के नियम के तहत प्रक्रिया करनी अनिवार्य हैं। इसमें जीपीएस फाइलें बनाई गई हैं। वहीं इस नियम के तहत उक्त परिवार होने पर ही वन अधिकार पट्टा मिल पाएगा। – राजेन्द्र डामोर, वनसरंक्षक, वन चौकी, डूंगरसारण