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भारत की सनातन संस्कृति में निहित है जीवन की सार्थकता

locationडूंगरपुरPublished: Feb 16, 2020 08:08:17 pm

Submitted by:

milan Kumar sharma

वागदरी में व्याख्यानमाला एवं सेवा सम्मान समारोह

भारत की सनातन संस्कृति में निहित है जीवन की सार्थकता

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डूंगरपुर. समाज सुधारक एवं विचारक कानसिंह चौहान ने कहा कि ईश्वर की कृपा से मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। ऐसे बिरले ही होते हैं, जो अपने जीवन को सार्थक कर जाते हैं। विश्व में कई संस्कृतियां हैं। लेकिन, भारत की सनातन संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो जीवन की सार्थकता सिखाती है।
चौहान ने यह विचार रविवार को वागदरी स्थित महाराणा प्रताप परिसर में जागरण जनसेवा मण्डल द्वारा सोहनलाल लोढ़ा की स्मृति में हुई 16वीं वार्षिक व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। अध्यक्षता उदयपुर के समाजसेवी सत्यनारायण माहेश्वरी ने की। विशिष्ठ अतिथि जागरण के संरक्षक शंकरभाई गहलोत एवं निमेश मेहता रहे।
जीवन की सार्थकता विषय पर आयोजित वार्षिक व्याख्यानमाला को सम्बोधित करते हुए चौहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति असतो मा सद्ग्मय के रूप में असत्य से सत्य की ओर चलने की प्रेरणा देती है। इस पर चलना सहज नहीं है। पर, इस मार्ग को अपना कर जीवन को सार्थक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन के अर्थ खोजे बिना जीवन की सार्थकता की सारी बाते बेमानी है। ये अर्थ हमें स्वयं ही खोजने होंगे। अध्यक्षता करते हुए माहेश्वरी ने कहा कि मौजूदा परिवेश में कतिपय ताकतों द्वारा देश में भ्रम की स्थितियां पैदा कर भारतीय संस्कृति को समाप्त करने के षड्यंत्र किए जा रहे हैं। एक हजार वर्ष बाद भारत का हिन्दू समाज जागृत हुआ है। पर, ये ताकते नहीं चाहती कि हिन्दू समाज फिर से जागरूक हो। सीएए का विरोध इसका एक उदाहरण है। कार्यक्रम में सेवा के क्षेत्र में विशिष्ठ सेवाओं के लिए 20 समाजसेवियों को सेवा सम्मान से सम्मानित किया। इस दौरान जावरा की कवयित्री निर्मला शर्मा ने कविता सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रारम्भ में मण्डल के संस्थापक सचिव मूलचंद लोढ़ा ने स्वागत किया। संचालन वरदीचंद राव विचित्र ने किया। आभार उपाध्यक्ष डा. दलजीत यादव ने व्यक्त किया।

जीवन सिर्फ हमारा नहीं
चौहान ने कहा कि हमारा मनुष्य जीवन सिर्फ हमारा नहीं है। बल्कि यह इस समाज की थाति है। केवल स्वयं के बारे में सोचने से बेहतर इस समाज के लिए सोचना होगा, जिसने हमे सबकुछ दिया है।

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