डूंगरपुर नगर परिषद के अध्यक्ष के के गुप्ता, उप सभापति फखरूद्दीन बोहरा और आयुक्त गणेश लाल खराडी ने बताया कि राजस्थान के आदिवासी बहुल बांगड़ क्षेत्र के डूंगरपुर नगर को’ खुले में शौच मुक्त घोषित किया है। यह नगर इस संबंध में केंद्र सरकार से तीन बार पुरस्कार ले चुका है। इसके लिए नगर को पांच करोड़ रुपए का विशेष पुरस्कार भी दिया गया है।
नगर में स्वच्छ भारत अभियान की सफलता तथा नवाचार को देखते हुए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गुप्ता को राज्य में ‘स्वच्छता दूत’ घोषित किया और राज्य के सभी नगर निकायों को डूंगरपुर नगर परिषद क्षेत्र का दौरा करने के निर्देश दिए। कई नवाचारों के लिए प्रधानमंत्री ने भी डूंगरपुर की तारीफ की है।
गुप्ता ने कहा कि डूंगरपुर के साथ धोखा हुआ है। कागजी प्रक्रिया में भारी चूक हुई। इससे शहर में स्वच्छता के सभी मानकों को नागरिकों की सहभागिता से पूरा कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में कुल 1400 अंक निर्धारित किए गए जिसमें 400 अंक खुले में शौच मुक्त के लिए है। नगर में इसे पूरा कर लिया गया है लेकिन इसे मात्र 322 अंक मिले हैं जबकि स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए परिषद ने अनेक काम किए हैं।
नगर में स्वच्छता के विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों को ब्योरा देते हुए गुप्ता ने कहा कि नगर की आबादी 60 हजार के आस पास है जिसमें 80 प्रतिशत आदिवासी लोग हैं। इसके बावजूद नगर में स्वच्छता के सभी मानकों को कडाई से पूरा किया गया और नया आधारभूत ढ़ांचा तैयार किया है। पूरे शहर को कूड़े कचरे से मुक्त करने के लिए कचरे के निस्तारण के लिए विस्तृत बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है।
आवारा पशुओं के लिए गौशाला बनाई गई है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में डूंगरपुर को स्थान नहीं मिलने से नगर परिषद और समूचे नगरवासियों को बहुत मलाल है। इसका विरोध करते हुए नगर से 50 हजार पत्र प्रधानमंत्री और आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय को भेजे गए हैं। उनका दावा है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रथम इंदौर और द्वितीय भोपाल से किसी भी तरह से डूंगरपुर पीछे नहीं है।
देश में कई नगर निकायों ने इस पर आपत्ति जताई है। लेकिन मंत्रालय ने कहा है कि स्वच्छता सतत प्रक्रिया है, जिसके लिए ठोस ढांचागत तैयारियां होनी चाहिए। परिषद के उप सभापति फखरुद्दीन बोहरा ने बताया कि डूंगरपुर नगर परिषद स्वच्छता के साथ कूड़ा-कचरा प्रबंधन में अव्वल है। नगर में कूड़े के ढेर नहीं है बल्कि कूडा छांटने के बाद 15 हजार रुपए प्रतिदिन नगर परिषद को आय होती है।
इसके लिए शहर के भिखारियों और कूड़ा बीनने वालों को लगाया गया है। इसके लिए इन्हें प्रतिदिन 250 रुपए प्रतिदिन का भुगतान किया जाता है। शत प्रतिशत स्वच्छता कायम करने के लिए शहर के बीच स्थित लगभग सात किलोमीटर दायरे में फैली गैप सागर झील की सफाई की गई है। बीच में बने बादल महल को संग्रहालय में बदल दिया गया है।
गुप्ता कहते हैं कि आदिवासी नागरिकों के व्यवहार को बदलना आसान नहीं था। शौच के लिए जंगलों में जाने वाली यहां की बड़ी आबादी को समझाना बड़ी चुनौती थी, जिसे स्थानीय लोगों के प्रयास से आसानी से सुलझा लिया गया। शहर में सफाई आधी रात को शुरु होती है और सुबह तक मशीन से सफाई की जाती है। स्वच्छता अभियान में लोगों की सहभागिता सुनिश्चित की गई है।
बस अड्डा, सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में शौचालयों की सफाई का प्रबंधन नगर परिषद ही करती है। इसकी निगरानी का दायित्व शहर के उत्साही नागरिकों को सौंपा गया है, जो शहर के समाजसेवी हैं। नगर परिषद आयुक्त गणेश लाल खराडी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने डूंगरपुर के स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की महिलाओं से सीधी बातचीत की थी। इन महिलाओं ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर किया है।
दूसरे राज्यों की महिला समूह भी यहां प्रशिक्षण के लिए आने लगी हैं। शहरी कार्य मंत्रालय ने 73 शहरों की रैंङ्क्षकग के लिए जनवरी 2016 में स्वच्छ सर्वेक्षण-2016 शुरू किया था। इसके बाद 434 शहरों की रैंकिंग के लिए जनवरी-फरवरी 2017 में स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 आयोजित किया गया। हाल में पूरा होने वाले स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 में 4203 शहरों की रैंकिंग की गई। चौथे स्वच्छ सर्वेक्षण-2019 का आयोजन 4 जनवरी से 31 जनवरी-2019 तक किया जाएगा। इसमें स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के तहत सभी शहरों की श्रेणी तय की जाएगी।