सडक़ के जेटीए कावा भाई...
सडक़ निर्माण कार्य में गांव के कावा भाई जेटीए बनकर मुख्य रूप से देख रहे हैं। यह सडक़ का लेवल, ऊंचाई, पत्थर, छोटे पत्थर को एडजस्ट कराने का काम मौके पर कर रहे हैं। ऊंचाई भी रखी जा रही ताकि खेतों को कोई परेशानी नहीं हो। आवाजाही भी बाधित नहीं हो। हालांकि सीमेंट प्रयोग करने का कार्य बजट पर देखा जाएगा। इसमें मिट्टी, कंकरीट, पत्थर के बाद फिर से मिट्टी डालकर रोलर से लेवल करवाने का विचार है।
श्रमदान को बनाया हथियार
१४ जून को बैठक कर सडक़ बनाने का बीड़ा उठाया। इसके लिए हर घर से दो हजार रुपए आर्थिक खर्चं उठाया जा रहा है, जो आर्थिक सहयोग नहीं कर पा रहे हैं, वह श्रमदान के लिए अपना समय दे रहे हैं। सुबह साढे सात बजे से ग्यारह बजे तक एवं अपरान्ह साढे तीन बजे से शाम तक कार्य किया जाता है। दो दिन रात 11 बजे तक श्रमदान किया।
स्कूटी मिली, पर नहीं मिली सडक़
स्नातक शिक्षित राजकुमार रोत बताते हैं कि यहां शिक्षा का उजियारा तो फैला है, लेकिन सडक़ नसीब नहीं हुई है। यहां सुनीता ७५ फीसदी अंक प्राप्त करने पर सरकार की तरफ से स्कूटी मिली है। यहां के बालक-बालिका शिक्षा में अव्वल है। स्थिति यह है कि स्कूल से श्मशान घाट तक की सडक़ आजादी के बाद से नहीं बन पाई। सरकार की स्कूटी बिना सडक़ के कैसे काम आ पाएगी।
सात फीट चौडी व पत्थरों की सडक़
सोहनलाल रोत बताते हैं कि खरवेड़ा स्कूल से जिस मार्ग तक सडक़ बनानी है। इसके दोनों तरफ खेत है।इसके लिए तीन फीट की मेड के अलावा किसानों ने दो-दो फीट की जमीन स्वेच्छा से दी। उन्हें समझाया गया है कि यह सडक़ कठिन परिस्थिति में लोगों के ही काम आएगी। तब १६ जून से काम शुरू किया गया।
ग्रामीण बताते है कि राशि कम पडऩे पर फिर से गांव में झोली फैलाकर सहयोग जुटाएंगे। ग्रामीणों का कहना है कि यह सडक़ बनते ही गांव की स्कूल से पहुंच आसान होगी। वहीं, गांव के बड़े-बुजुर्ग बीमार होने पर सहजता से मुख्य सडक़ तक पहुंच सकेंगे। पंचायत समिति प्रशासन, प्रधान, विधायक, राज्यसभा सांसद को अवगत करा चुके हैं। उम्मीद थी कि सडक़ का काम सरकार की तरफ से होगा, लेकिन नहीं हो सका।