लाल फीते की लपेट में वागड़
डूंगरपुरPublished: Dec 01, 2015 11:41:00 pm
जनजाति बहुल वागड़ अंचल एड्स के शिकंजे में है। रोजगार के लिए पलायन और
राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थिति के चलते यहां साल-दर-साल एचआईवी पॉजीटिव
डूंगरपुर। जनजाति बहुल वागड़ अंचल एड्स के शिकंजे में है। रोजगार के लिए पलायन और राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थिति के चलते यहां साल-दर-साल एचआईवी पॉजीटिव मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है। करीब डेढ़ दशक पूर्व पहला मरीज चिन्हित होने के बाद अब यह आंकड़ा दो हजार को पार कर गया है। इसके पीछे एक नहीं अनके कारण हैं। इन हालात पर यदि नियंत्रण के प्रयास नहीं हुए तो हालात भयावह होते देर नहीं लगेगी।
सागवाड़ा और बिछीवाड़ा सर्वाधिक संवेदनशील
एचआईवी की दृष्टि से सागवाड़ा और बिछीवाड़ा उपखंड क्षेत्र सर्वाधिक संवेदनशील है। दोनों क्षेत्रों के कई गांवों में एचआईवी पॉजीटिव मरीजों की भरमार है। डूंगरपुर जिले में वर्ष 2002 में पहली बार एचआईवी पॉजीटिव मरीज की अधिकृत तौर पर पहचान हुई थी। जांच सुविधा शुरू होने के बाद धड़ाधड़ मरीज चिन्हित होने पर चिकित्सा विभाग में हडकम्प मच गया था। एचआईवी मरीजों की नियमित नि:शुल्क जांच व दवाएं सहित अन्य सुविधाएं देने के लिए एड्स कंट्रोल सोसायटी के तत्वावधान में एंटी रेट्रो थैरेपी (एआरटी) सेन्टर स्थापित किए गए।
इन सेन्टर पर एचआईवी पॉजीटिव मरीजों का पंजीयन कर उन्हें नियमित जांच व दवाइयां नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं। पूर्व में डूंगरपुर-बांसवाड़ा के मरीजों का पंजीयन उदयपुर एआरटी सेन्टर पर किया जाता था, लेकिन अप्रेल, 2013 से स्व. हरिदेव जोशी सामान्य चिकित्सालय में एआरटी सेन्टर स्थापित हुआ। इस सेन्टर पर डूंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों सहित उदयपुर जिले के खेरवाड़ा क्षेत्र के मरीजों का पंजीयन किया जाता था। हालांकि अब बांसवाड़ा में भी एआरटी सेन्टर हैं।
भयावह है स्थितियां
सूत्रों की मानें तो जिले में एचआईवी की स्थितियां भयावह हैं। मोटे तौर पर करीब दो हजार से भी अधिक मरीजों की पहचान हो चुकी है। हालांकि यह आंकड़ा भी सटीक नहीं है। एड्स के लिए काम करने वाली संस्थाओं के मुताबिक डूंगरपुर जिले में हजारों मरीज ऐसे भी है, जो सामाजिक लोकलाज के चलते चिकित्सा संस्थानों तक पहुंचते ही नहीं है।
ये हैं कारण
रोजगार के लिए अन्यत्र पलायन
अशिक्षा और गरीबी
राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थिति
ऐसे फैलता है एड्स
असुरक्षित यौन संबंध
संक्रमित सीरिंज
एचआईवी पीडि़त मां से होने वाले बच्चे को
एआरटी सेन्टर पर नि:शुल्क सुविधाएं
एआरटी सेन्टर पर मरीजों को नियमित जांच व दवाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके अलावा स्वयंसेवी संस्था इंडिया हैल्थ एक्शन ट्रस्ट एवं विहान की ओर से मरीजों को घर से चिकित्सालय तक आने के लिए रियायत बस पास, अन्त्योदय अन्न योजना का राशनकार्ड, विधवा पेंशन योजना व पालनहार योजना का भी लाभ दिलाया जा रहा है। संस्थानों तक पहुंचते ही नहीं है।
संक्रमित मां दे सकती है स्वस्थ शिशु का जन्म
बरसों के इंतजार के बाद सूनी गोद भरने की आस जगी. . । घर में खुशियों का आलम था। घर परिवार की बड़ी बुजुर्ग बहू की बलैया लेते नहीं थक रही थी। किलकारी गूंजने में एक-डेढ़ माह शेष था, तभी ऐसी सच्चाई सामने आई, जिससे पूरे परिवार में मातमी सन्नाटा छा गया। बहू एचआईवी पॉजीटिव पाई गई। ऐसे में जन्म लेने वाले शिशु का भी संक्रमित होना तय था, लेकिन लगातार मोनिटरिंग और उपचार के बाद कोख से ‘जिन्दगीÓ ने जन्म लिया। शिशु दो साल का हो चुका है तथा पूरी तरह से स्वस्थ है। यह केस स्टडी है सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र की ललिता (बदला हुआ नाम) की।
स्वयंसेवी संगठन इंडिया हैल्थ एक्शन ट्रस्ट के जिला कार्यक्रम समन्वयक राकेश दाधीच के मुताबिक ललिता का पति गुजरात में काम करता था। ललिता के एचआईवी पॉजीटिव पाए जाने पर तत्काल उदयपुर में जांच व उपचार की सलाह दी, लेकिन उसका पति नहीं माना। इस पर संस्था तथा एआरटी सेन्टर के काउंसर ने समझाइश की।जांच में पति भी संक्रमित मिला। ललिता को आवश्यक दवाईयां दी तथा नियमित जांचें कराई। सितम्बर, 2013 में प्रसव हुआ। डेढ़ माह की आयु में शिशु की ड्राय ब्लड सेम्पल जांच कराई। इसके बाद छह माह, 12 माह तथा 18 माह में जांच कराई। इसमें शिशु पूर्णतया स्वस्थ पाया। वर्तमान में बच्चे की आयु करीब 26 माह हो चुकी है। ऐसी नौ केस स्टडी हैं, जिनमें एचआईवी पॉजीटिव गर्भवती माताओं के शिशु आज स्वस्थ हैं।