डीआरआर-42 धान रिसर्च सेंटर ऑफ हैदराबाद की किस्म है। डीआरआर-42, आइआर-64 की वैरायटी है। हैदराबाद रिसर्च सेंटर ने आईआर-64 में सूखा सहन वाले जिंस को ट्रांसफर कर नई वैरायटी तैयार की है। इसे भारत की प्रथम सुखारोधी किस्म (paddy seeds) भी कहा जाता है। यह मटासी, ढोरसा, पठारी और ढलान वाली जमीन के लिए सबसे ज्यादा कारगर है। कम पानी और सूखे में भी इसकी पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता। कम सिंचाई संसाधन वाले क्षेत्र के लिए यह किस्म वरदान साबित हुआ है। तना छेदक, ब्लाइट जैसे रोग प्रतिरोधी होने की वजह से लागत परंपरागत धान के किस्म की तुलना में कम है। पठारी वाले इलाके किसानों के लिए यह प्रजाति का धान वरदान साबित हुआ है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में भी इसकी अच्छी डिमांड है। (Durg news)
दुर्ग और बेमेतरा जिले में सिंचाई की सुविधा नहीं है। ज्यादातर किसान भगवान भरोसे खेती करते हैं। 2015-16 और 2016-17 में पाटन, धमधा, साजा, बेरला विकासखंड के किसानों को कम बारिश की वजह से सूखे का सामना करना पड़ता है। सूखे के कारण सरना, महामाया, एचएमटी की फसल सूख गई थी। किसानों ने खड़ी फसल में जानवरों को छोड़ दिए थे। कम बारिश होने पर नहरों से समय पर पानी नहीं मिलता है। कई बार तो फसल सूख जाने के बाद बांध से पानी छोड़ा जाता है। इस तरह की समस्या से क्षेत्र के किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
रिसर्च वैरायटी धान की यह फसल 120-125 दिन से कम समय में पक जाती है। फसल जल्दी आने पर मार्केट में दाम भी अच्छा मिल जाता है। रबी फसल के लिए खेत को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। नई किस्म के धान की प्रति हेक्टेयर 50 से 55 क्विंटल की पैदावार है। इस वजह से किसान परंपरागत धान के बजाय रिसर्च वैरायटी के बीज की मांग करने लगे हैं।
कृषि वैज्ञानिक,आईकेविवि डॉ. संदीप भंडारकर ने बताया कि इंदिरा गांधी कृषि विवि लोकल वैरायटी को ही अपग्रेड कर रही है। महामाया को अपग्रेड कर राजेश्वरी तैयार किया है, जिसकी कम सिंचाई सुविधा में अच्छी पैदावार है। प्रबंधक बीज विकास निगम रूआबांधा एसके बेहरा ने बताया कि इस साल अच्छी बात यह है कि किसानों ने पहले से अपनी मांग निगम को बता दिया था। 3905 क्विंटल धान के बीज का भंडारण किया है। निगम मेंं उड़द, तिल, सोयाबीन और अरहर का पर्याप्त स्टॉक है। (Durg news)
माहेश्वरी- 130-135 दिन, उपज 55-60 क्विंटल, दाना लंबा व पतला, खाने में उपयुक्त भूरा माहो, तनाछेदक की बीमारी से सहनशील।
इंदिरा बरानी-111-115 दिन, 35-45 क्विंटल उत्पादन, दाना मध्यम व पतला, उथल निचली जमीन के लिए उपयुक्त, तनाछेदक और ब्लाइट रोग से लडऩे की क्षमता।
इंदिरा एरोबिक-115-120 दिन, 45-50 क्विंटल उत्पादन, कम पानी, आवश्यकता पडऩे पर ही सिंचाई, नेक ब्लास्ट, 10-15 दिनों तक बाढ़ में डूब रहने के बावजूद पत्तियां नहीं सड़ती।
राजेश्वरी- 120-125 दिन, 55-60 क्विंटल, लंबा व मोटा दाना, पोहा के रूप में डिमांड, महामाया का विकल्प