अर्थदंड अदा न करने पर २-२ माह अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगी। यह फैसला न्यायाधीश मोहन सिंह कोर्राम के न्यायालय में सुनाया गया। अभियुक्तों ने हितग्राहियों के लिए ऋण के रुप में जारी की गई राशि को फर्जी चि_ी तैयार कर बैंक से आहरित किया था। गड़बड़ी १९ लाख रुपए की थी। जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति में 19 लाख घोटाले का खुलासा 1996 में हुआ था। तब बसंत प्रताप सिंह कलेक्टर थे। जिला अंत्यावसायी विभाग ने चिन्हित हितग्राहियों का ऋण मंजूर किया था।
प्रकरण के आधार पर स्वीकृत ऋण की अनुदान राशि का चेक विभाग ने ऋण देने वाली बैंक को नियमानुसार जारी किया था। बाद में यह गड़बड़ी की गई कि विभाग द्वारा जारी अनुदान राशि के चेक को कूटरचित पत्र लिखकर बैंक से वापस ले लिया गया, फिर सिविक सेंटर भिलाई स्थित यूको बैंक और चंदखुरी स्थित दुर्ग-राजनांदगांव ग्रामीण बैंक में विभाग के नाम पर फर्जी तरीके से खाता खोल लिया गया। उस खाते में वापस ली गई राशि का चैक जमा कर उसे आहरित कर लिया गया।
तत्कालीन कलेक्टर बीपी सिंह ने मामले की जांच के आदेश दिए थे। बाद में कलेक्टर ने बीच में ही जांच को बंद करने का आदेश दिया। जांच रोकने का मुख्य कारण संभाग आयुक्त द्वारा प्रकरण की जांच के लिए सीआर नवरत्न कमेटी का गठन करना था। नवरत्न कमेटी की जांच के बाद रिपोर्ट के आधार पर सिटी कोतवाली पुलिस ने १४ लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज कर न्यायालय में चालान पेश किया था।
प्रकरण के आरोपी सीईओ जेसी मेश्राम को हाईकोर्ट ने मामले से उन्मुक्त कर दिया। इसी प्रकरण में एक अन्य आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में भी आवेदन प्रस्तुत किया। आवेदन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित सुनवाई कर निराकरण करने के लिए गाइड लाइन जारी की। इस प्रकरण में खास बात यह है कि 217 से डे टू डे गवाही चल रही थी। केवल न्यायाधीश के अवकाश में रहने और कोर्ट बंद होने की दशा में ही सुनवाई स्थगित रहती थी। न्यायालय की कार्यवाही का विवरण हर रोज हाईकोर्ट को भेजा जाता था।
यह घोटाला जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति के तत्कालीन सीईओ जेसी मेश्राम के कार्यकाल में शुरू हुआ था। उनके स्थानांतरण के बाद पदभार संभालने वाले एनसी गजभिए ने मामले को सार्वजनिक किया। दरअसल नेहरु नगर स्थित यूनियन बैंक के अधिकारियों ने यह कहते हुए सीईओ से मुलाकात की थी कि उनके पास 8.83 लाख का ड्राफ्ट क्लीयरेंस के लिए आया है। ड्राफ्ट यूको बैंक से आया है।
इस प्रकरण में कुल 138 गवाह थे, लेकिन 101 गवाहों का बयान ही न्यायालय में दर्ज हुआ। आखरी गवाह के रुप में न्यायालय के बुलावे पर 25 मई 2018 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह उपस्थित हुए थे। घोटाला के समय बसंत प्रताप सिंह दुर्ग के कलेक्टर थे। इस मामले में उनकी गवाही चार घंटे से भी अधिक समय तक चली थी।