न्यायाधीश ने फैसले में कहा है कि दत्तक ग्रहण के लिए सामाजिक रिवाज या कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। जिस व्यक्ति को गोद लेना है, उसकी आयु 15 वर्ष से कम होना आवश्यक है, लेकिन बीएसपी कर्मचारी ने 25 वर्ष के युवक को गोद लिया है। इसलिए परिवाद ग्राह्य योग्य नहीं है। न्यायाधीश ने परिवाद को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि परिवादी व अनावेदक अपना वाद व्यय भी स्वयं वहन करेंगे।
के गुरुमूर्ति बीएसपी कर्मचारी है। उसने अपने नौकरी के दौरान मिलने वाले सभी लाभ व सुविधाओं के लिए पुत्र के रुप में जेजेश्वर राव (२६) वर्ष का नाम दस्तावेज में जुड़वाना चाहता है। गुरुमूर्ति ने इसके लिए बीएसपी प्रबंधन के समक्ष आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन प्रस्तुत किया था, लेकिन बीएसपी प्रबंधन ने आवेदन को अस्वीकार कर दिया। आवेदन प्रस्तुत करने के कुछ माह बाद गुरुमूर्ति ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सूचना का अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी कि आखिर दस्तावेज पर उसके दत्तक पुत्र का नाम क्यो नहीं जोड़ा गया, लेकिन बीएसपी ने सूचना का अधिकार के तहत व्यक्तिगत जानकारी देने से इंकार कर दिया।
बीएसपी कर्मचारी मूलत: आंध्रप्रदेश के काकुलम जिले के रहने वाले है। विवाह के ३५ वर्ष तक संतान प्राप्त नहीं हुई। इसके बाद सामाजिक रीति रिवाज से अपने रिश्तेदार के बेटे को गोद ले लिया। इस दौरान सारी औपचारिकता सामाजिक पदाधिकारियों और परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में पूरी हुई। उन्होंने वंश परंपरा को कायम रखने के लिए रिश्तेदार के पुत्र को गोद लिया है।
के. जेजेश्वर राव को गोद लेने के बाद के गुरुमूर्ति २७ अगस्त २०१४ को उप पंजीयक कार्यालय गया। जहां उसने गोदनामा का पंजीयन कराया। इसके बाद उसने चल अचल संपत्ति का उत्तराधिकारी उसे बनाया। बीएसपी कर्मचारी ने परिवाद प्रस्तुत करते समय पंजीयन संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत किया था।
न्यायालय में सुनवाई के दौरान बीएसपी प्रबंधन ने लिखित में तर्क प्रस्तुत किया। प्रबंधन का कहना है कि परिवादी भिलाई इस्पात सयंत्र के नगर सेवाएं विभाग में पदस्थ है। गोदनामा वयस्क होने के बाद लिया गया है। विधि विपरीत होने के कारण आवेदन पर किसी तरह का विचार नहीं किया गया।