दूल्हा सागर की गाड़ी सबसे आगे थी। पीछे-पीछे गाजे-बाजे के साथ दस बैल गाडिय़ों में बाराती चल रहे थे। इस अनोखी बारात को रास्तेभर लोग देखते रहे। छत्तीसगढ़ की यह पुरानी परंपरा जहां बुजुर्गों को उनके बीते दिनों की याद ताजी करा गई। वहीं युवाओं और बच्चों के लिए कौतूहल का विषय रहा।
शादी घर में आए मेहमान और गांव वालों ने दूल्हा व सभी बारातियों का आत्मीयता के साथ स्वागत किया। रात में विवाह की सभी रस्में पूरी की गई। दूल्हा सागर और दुल्हन अल्का सात फेरे लेकर परिणय सूत्र में बंधे। इसके बाद उसी बैलगाडिय़ों से बारात वापस हुई। छत्तीसगढ़ की पुरानी परंपरा को संजोए रखने के लिए चतुर्वेदी परिवार की इस पहल की लोगों ने बहुत प्रशंसा की।