आत्मतत्व को पाने नमन का गुण जरूरी
साध्वी ने कहा कि जिस तरह पानी प्राप्त करने के लिए बाल्टी को नल के नीचे रखना होगा और सीधा रखना होगा तभी नल का पानी बाल्टी में भरेगा। इसी तरह आध्यात्म का भी गणित है कि आत्मतत्व को पाने के लिए सर्वप्रथम नमन का गुण अनिवार्य है। इसलिए सभी महापुरूषों ने शास्त्रों का प्रारम्भ नमो शब्द से ही किए हैं। मंत्रों में भी पहले नमो शब्द का ही उपयोग होता है।
मैं और मेरा के चक्कर में जीव
जीव अहम् और मम के चक्कर में ही पड़ता रहता है। अहम् यानि मैं और मम यानि मेरा। जब जीव शरीर के स्थान पर अहम् यानि मैं आत्मा हूं और मम यानि सिद्धतत्व के गुण मेरा आत्म स्वभाव है, देव गुरू धर्म मेरा है, मानने लगता है तो कर्मो से रहित होकर परमात्मा बन जाता है।
साधक के वश में होता है मन
मन इन्द्रियों के अधीन होकर काम करता है। जो इन्द्रिय सुख से संबंधित पदार्थ है उसे सहजता से ग्रहण करता है, लेकिन साधक आत्मा मन को पहले नियंत्रित करता है साधक आत्मा भाव को महत्व देता है इसलिए साधना आराधना गांव-शहर-जंगल कहीें भी हो साधक आत्मा को सभी स्थान गम्य होता है।
अपनी मूर्खता पहचानना कठिन
मन की विचित्रता है कि दूसरों की दोष देखता है, अपनी मूर्खता कभी नहीं देखता। अपनी मूर्खता को पहचानना कठिन है। अपने दोष और मूर्खता को बिरले ही स्वीकारते और समझते हंै। सब प्रयास करेें कि पंचसूत्र की विवेचना का आवगाहन करते हुए तप, त्याग व धर्म की सुवास हमारे जीवन को महका दे।