इस आयोजन में तीन पीढिय़ों को शामिल किया गया। नानी, मम्मी और बेटी। नानी के रूप में सीनियर सिटीजन संजीवनी श्रीवास्तव, वनमाला झा, एसएस सिद्दकी, मनोरमा चौहान एवं ऐडिना मैरी फर्नान्डीस ने हिस्सा लिया। वहीं मां की भूमिका में कॉलेज की प्रोफेसर्स थी। जबकि छात्राओं ने बेटियों की जगह खुद को रखकर प्रश्न पूछे। संजीवनी श्रीवास्तव ने कहा कि बेटियां मायके से संस्कार लाती है जो दो परिवार को जोड़ता है। उनके समय में संयुक्त परिवार होते थे। जहां अनुशासन, त्याग और प्रेम रहता था। संस्कार ही परिवार की पहली पाठशाला है। उस वक्त जीवन में इतनी भागदौड़ नहीं थी। एक अच्छा सामाजिक परिवेश था। पर आज स्थिति बदल गई है। एमएससी की छात्रा शिल्पी ने पूछा कि पहले के समय की तुलना में आज लड़कियां अपने आपको ज्यादा असुरक्षित महसूस करती है ऐसा क्यों? इसके जवाब में संजीवनी श्रीवास्तव ने कहा कि आज के परिवेश में असुरक्षित परिधान और निरंकुशता के कारण हमें कई दफे परेशानियों को सामना करना पड़ता है।
महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. ऋचा ठाकुर ने कहा कि हम सारे सुधार की कवायद बेटियों के लिए करते है। अपेक्षाएं भी उन्हें से करते है पर बेटों को इन सबसे अलग रखते है। एसएस सिद्दकी ने कहा कि चाहे लड़का हो या लड़की संस्कार तो परिवार से ही मिलता है। परिवार में मां से बेहतर कोई मार्गदर्शक नहीं होता। उन्होनें कहा कि आज की पीढ़ी कॅरियर के प्रति जागरूक है उसे अपने कॅरियर के साथ परिवार की भी जिम्मेदारी के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।
वनमाला झा ने प्रमुख हस्तियों इन्दिरा गांधी, मदर टेरेसा और किरण बेदी का जिक्र करते हुए कहा कि इनका संघर्ष कम नहीं था और आज यह सब सभी के लिए आदर्श बन चुकी है। गृहविज्ञान की छात्रा रानू टकरिया ने कहा कि हमें दो जनरेशन को लेकर चलना है और सबका अनुभव उनकी पीढ़ी को आगे का मार्ग दिखाएगा। इस अवसर पर मनोरमा चौहान, फर्नान्डीस ने भी छात्राओं को अपने अनुभव बताए। छात्राओं की ओर से हिमानी, निकिता साहू, यामिनी साहू, रेशमा साहू ने अपने विचार रखे एवं नानियों से प्रश्न भी पूछे। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने कहा कि इस चर्चा में सामाजिक परिवेश, शिक्षा और ज्ञान के साथ व्याप्त विसंगतियों को भी दूर करने का बेहतर प्रयास किया गया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन डॉ. ज्योति भरणे ने किया।