डॉ. रूद्र का मानना है कि दवा तो अपनी जगह काम करती है, लेकिन जब एक डॉक्टर मरीज के मन की बात को समझने लगता है, तो इलाज और तेजी से होने लगता है। उन्होंने कहा कि अगर हम किसी मरीज से उसका हालचाल पूछ लेते हैं या उनकी तकलीफ को जानते हैं, तो मरीज के मन में एक नया विश्वास जागता है कि डॉक्टर को सब पता है और वे उन्हें जल्दी ठीक करेंगे। वे बताते हैं कि कोविड के कई ऐसे मरीज थे, जिनके साथ न तो परिजन थे और न ही कोई केयर करने वाला, तब ऐसे मरीजों का आत्मबल बढ़ाने की जिम्मेदारी सभी मेडिकल स्टॉफ की हो जाती है। और उन्हें इस बात का सुकून है कि उनके साथ-साथ नर्सिग स्टाफ ने मरीजों का उत्साह बढ़ाने कोई कसर नहीं छोड़ी।
कोविड के ऐसे मरीज जो काफी गंभीर स्थिति में यहां आए और उन्हें स्वस्थ कर घर तक भेजने वाले डॉ रूद्र का मानना है कि कोविड से अकेले जंग नहीं लड़ी जा सकती। फिर चाहे डॉक्टर कितना अच्छा इलाज क्यों न जानता हो, जब तक उनके नर्सिंंग स्टॉफ, हॉस्टिपटल मैनेजमेंट और मरीज का रिस्पांस बेहतर न मिले तो कुछ भी संभव नहीं। उन्होंने बताया कि इस सेंटर में जब भी जिस चीज की जरूरत पड़ी, प्रशासन ने सबकुछ उपलब्ध कराया। जिससे मरीजों के इलाज में और भी आसानी होती चली गई।