स्टेशन में अगर प्यास लगती है और आप सील बंद पानी बोतल खरीदकर पीते हैं तो खाली बोतल को इधर उधर न फेंके। रेलवे ने पर्यावरण और सेहत को ध्यान में रखते हुए बॉटल क्रशिंग मशीन लगाई है। बॉटल क्राशिंग मशीन में खाली बोतल को डालते ही एक मिनट में प्लास्टिक का बोतल छोटे-छोटे टुकडों में बंट जाता है। इसके बाद उसका दोबारा उपयोग संभव ही नहीं है। रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि यह मशीन देश के गिनती के ही स्टेशनों में बतौर प्रयोग लगाई गई है। लोग अगर जागरुक होते हैं और मशीन का उपयोग करना अपनी आदत में शामिल कर लेते है तो हर प्लेटफार्म में इस मशीन को स्टाल करने की योजना है।
रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि रेलवे ने सफाई व्यवस्था के तहत हर प्लेटफार्म पर डस्टबीन का इंतजाम किया है। जहां चाय कॉफी के डिस्पोजल समेत अन्य रैपर व कचरा को एकत्र किया जाता है। डस्टबीन में पानी कका बोतल अधिक जगह घेर लेता है। मशीन की उपयोगिता बढऩे से डस्टबीन में केवल छोटे छोटे कचरा व डिस्पोजल ही एकत्र किया जाएगा। साथ ही रेलवे ट्रैक के आसपास पानी का बोतल नजर नहीं आएगा। इससे काफी हद तक प्रदूषण को रोका जा सकता है।
रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि स्टेशन में हर दिन १०० से अधिक बोतल का क्राशिंग किया जा रहा है। बोतल को डालते ही प्लास्टिक छोटे छोटे टुकड़ों में बट जाता है। इसे एक जगह एकत्रित किया जा रहा है। बाद में इसे छोटे छोटे टुकड़े को रिसाइकिलिंग करने वापस बोतल निर्माता कंपनी को बेचा जाएगा।
मशीन को सफाई ठेका कर्मियों को दिया गया है। मशीन का संचालन व देखरेख वहीं कर रहे हैं। लोगों को मशीन में खाली बोतल डालने के लिए एक सफाई कर्मचारी प्रेरित भी करता है। शुरूआती दौर में मशीन की उपयोगिता दुर्ग रेलवे स्टेशन में सार्थक नजर आ रही है। लोग उत्सुकता से मशीन का उपयोग कर रहे हैं।
स्टेशन पहुंचे यात्रियों को मशीन का उपयोग करने प्रेरित किया जा रहा है। इसके बाद अगर कोई भी यात्री स्टेशन में पानी का खाला बोतल अन्यत्र फेकते पकड़ा गया तो रेलवे एक्ट के तहत उससे जुर्माना वसूल किया जाएगा। स्टेशन में गंदगी फैलाने की धारा के तहत जुर्माना २०० रुपए तक हो सकता है।