प्रशासन ने पहली बार इन पक्षियों के संरक्षण को लेकर गंभीरता दिखाई है। वन विभाग की मदद से आसपास के क्षेत्रों में सर्वे कराया जा रहा है। जिसमें यह पता लगाया जा रहा है कि साइबेरियन के अलावा और कितने प्रजाति के प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। वे किस तरह और किन जगहों पर रहना पसंद करते हैं। कितने पक्षी झुंड में रहते हैं। साइबेरियन के साथ झुंड मेंं अन्य प्रजाति के पक्षी तो नहीं रहते। अधिकारियों ने बताया कि सर्वे के आधार पर ही प्रवासी पक्षियों के लिए उपयुक्त जगह की तलाश कर उसे विकसित किया जाएगा।
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक आम तौर पर साइबेरियन पक्षियों को खेतों में देखा गया है। धान कटाई के बाद वे खेतों में दाना की तलाश करने यहां तक पहुंचते है। खेतों में पड़े धान को खाने के बाद वहीं जमीन या फिर झाड़ीनुमा पेड़ पर घोंसला बनाकर रहते हैं। बोरसी और धनोरा में साइबेरियन के हर साल पहुंचने की सूचना वन विभाग के अधिकारियों को मिलती है। अधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आम तौर पर साइबेरियन ही आते हैं।
ठंड के मौसम में प्रदेश की जलवायु इन पक्षियों के अनुकुल रहती है। इसी वजह से दीपावली के बाद से जिले में पूर्वी देशों से प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। जिसमें साइबेरियन प्रमुख है। ये पक्षी नवंबर से फरवरी तक यहां रहते हैं। मार्च में तापमान बढऩा शुरू होता है तब ये वापस लौटने लगते हैं। प्रवासी पक्षियों के लिए नया तालाब निर्माण पर भी विचार किया जा रहा है।
प्रवासी पक्षियों को संरक्षण देने के लिए वन विभाग ने सर्वे शुरू कर दिया है। सर्वे कार्य की मॉनिटरिंग कलक्टर उमेश अग्रवाल खुद कर रहे हैं। सर्वे के बाद वन विभाग के अधिकारी प्रोजक्ट तैयार कर प्रस्ताव शासन को भेजेंगे। शासन से मंजूरी मिलते ही काम शुरू किया जाएगा।
वन विभाग ने तीन वर्ष पहले प्रवासी पक्षियों के लिए बेमेतरा जिले के ग्राम गिधवा के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया था। वहां पर पक्षियों को अनुकू ल वातावरण देने के लिए क्षेत्र को विकसित किया जा रहा है। वर्षा कम होने के कारण चिन्हित तालाब में पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इस वजह से यह प्रोजेक् ट अब तक पूरा नहीं हुआ है।