जानकारी के मुताबिक समलिया ने सरकारी जमीन को बेचने के लिए पहले भिलाई निवासी अविनाश से सौदा किया था। अनिवनाश से २ लाख रुपए एडवांस भी लिया था। बाद में रामरतन ने जमीन की कीमत सौदे की कीमत से ५ लाख रुपए अधिक देने का लालच दिया और जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम पर करा लिया। समलिया ने जमीन का सौदा रद्द करने के बाद एडवांस रकम भी नहीं लौटाया।
कलेक्टर की अनुमति के बिना रजिस्ट्रीकर दी। यह जमीन सराकारी है और पट्टे पर है। इसके लिए कलेक्टर की अनुमति जरुरी है। उप पंजीयक ने कलेक्टर की अनुमति के बिना सरकारी जमीन की रजीस्ट्री की।
आपत्ति के बाद भी नामांतरण किया। अभिलेख में क्रेता का नाम दर्ज कराने का निर्देश दिया। पटवारी महेत्तर राम
प्रकरण की जानकारी थी फिर भी अभिलेख में कांटछांट किया और रजिस्ट्री के लिए दस्तावेज दिया।
शिकायतकर्ता मनोहर ज्ञानचंदानी ने बताया कि जमीन प्रमाणीकरण और अभिलेक में नाम चढ़ाने की प्रक्रिया के लिए तहसील कार्यालय से पेपर प्रकाशन कराया गया था। इश्ताहार पढ़कर कलेक्टोरेट के नकल शाखा से दस्तावेज एकत्र किया। सुनवाई में जमीन नामांतरण पर रोक लगाने आवेदन दिया तब भी तहसीलदार ने ९ सिंतबर २०१४ को जमीन नामांतरण का आदेश पारित किया। एंटी करप्शन ब्यूरो ने शिकायत इओडब्ल्यू को सौंपी।