परमात्मा बनने की हो प्रतिस्पर्धा
गुरू ही वह तत्व है जो हमें धर्म का ज्ञान कराकर परमात्मा के पथ पर चलने, परमात्मा के सिद्धांतों का अनुसरण करने और परमात्मा जैसे बनने की प्रेरणा देते हैं। प्रतिस्पर्धा की दौर में हमारी प्रतिस्पर्धा आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बनने की होनी चाहिए। सही दिशा में की गई प्रतिस्पर्धा जीवन के लिए कल्याणकारी होती है।
देशभर से पहुंचे आराधक
गुरू पूर्णिमा पर तीर्थ में देशभर से पूनम आराधक पहुंचे। इनमें सुजालपुर, मुम्बई, कलकत्ता, मेरठ, ऋषिकेश, रायपुर, कांकेर, गोंदिया, विशाखापट्टनम के आराधक शामिल थे। तीर्थ अध्यक्ष गजराज पगारिया ने आराधकों का स्वागत किया। श्राविका स्मिता बेन मयूर भाई सेठ भरूच ने तीर्थपति की मंत्रोच्चार के साथ महाभिषेक किया।
गुरू कृपा से खुलते है, सौभाग्य के व्दार
आनंद मधुकर रतन भवन में धर्मसभा को साध्वी किरणप्रभा, विचक्षणश्री, अपृताश्री, रत्नज्योति ने संबोधित किया। साध्वी विचक्षणश्री ने कहा कि भगवान महावीर की तरह वर्तमान युग में सदगुरू आत्मदर्शन कराने के लिए अनंत करूणा लेकर आते हैं। जब गुरू चरणों में शिष्य आता है तो गुरूकृपा से सौभाग्य के व्दार खुल जाते है।