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हमें न हो ये खतरनाक बीमारी, इसलिए रात में घर-घर जाकर मरीज ढूंढते हैं स्वास्थ्यकर्मी, जान जोखिम में डालकर सेवा करने वालों की Live रिपोर्ट

locationदुर्गPublished: Oct 15, 2019 01:29:27 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

दुर्ग जिला समेत प्रदेशभर में स्वास्थ्य विभाग की टीम को मरीजों की तलाश के लिए ब्लड सैंपल लेने में मशक्कत करनी पड़ रही है। लाइव रिपोर्ट पढि़ए रिपोर्टर मुकेश देशमुख और फोटो जर्नलिस्ट नाहिद शेख के साथ…

हमें न हो ये खतरनाक बीमारी, इसलिए रात में घर-घर जाकर मरीज ढूंढते हैं स्वास्थ्यकर्मी, जान जोखिम में डालकर सेवा करने वालों की Live रिपोर्ट

हमें न हो ये खतरनाक बीमारी, इसलिए रात में घर-घर जाकर मरीज ढूंढते हैं स्वास्थ्यकर्मी, जान जोखिम में डालकर सेवा करने वालों की Live रिपोर्ट

दुर्ग. फाइलेरिया (filaria Disease ) मरीजों की तलाश दिन ढलने के 3 से 4 घंटे बाद होती है। दरअसल दिन में इसके बैक्टीरिया सक्रिय नहीं रहते। दुर्ग जिला समेत प्रदेशभर में स्वास्थ्य विभाग की टीम को मरीजों की तलाश के लिए ब्लड सैंपल लेने में मशक्कत करनी पड़ रही है। कभी कुत्ते मोहल्लों में दौड़़ाते हैं तो कभी आधूरी नींद मे जगाने पर लोग गााली-गलौज करते हैं। दुर्ग में आमदी मंदिर वार्ड 24 में पत्रिका ने स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ जांच के दौरान होने वाली परेशानी को देखा… जिसकी लाइव रिपोर्ट पढि़ए रिपोर्टर मुकेश देशमुख और फोटो जर्नलिस्ट नाहिद शेख के साथ…
रात के 10 बज रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के पांच कर्मचारी पैदल मोहन नगर थाना के सामने मिले। यहां से 200 कदम पैदल चलकर आमदी मंदिर वार्ड के गली में पहुंचे। यहां बस्ती में करीब 225 मकान हैं। आबादी करीब एक हजार। जैसे ही गली में आगे बढ़े तीन-चार कुत्ते भौंकने लगे। चारों तरफ से घेर लिया। किसी तरह कुत्तों को भगाया तो दो शराबी मिल गए। वे पूछताछ करने लगे कि यहां क्या कर रहे हो। बताया फाइलेरिया के लिए ब्लड सैंपल लेंगे। घर वाले सो गए हैं, आज नहीं कल आना। आधे घंटे तक ये उलझाते रहे। ये बीमारी कितनी खतरनाक जब यह समझ आया। फिर लोगों को घरों से उठाने लगे।
इसलिए रात में सैंपल
इस बीमारी के जीवाणु सूरज की रोशनी में छिप जाते है। दिन ढलने के लगभग 3-4 घंटे बाद वे बाहर आते हंै। दरअसल ऑक्सीजन की कमी होने के कारण बैक्टीरिया कोशिकाओं से बाहर निकलकर रक्त मेें आते है। इसलिए मरीज को चिन्हित करने के लिए रात में ही ब्लड सैंपल लेकर स्लाइड तैयार किया जाता है।
हमें न हो ये खतरनाक बीमारी, इसलिए रात में घर-घर जाकर मरीज ढूंढते हैं स्वास्थ्यकर्मी, जान जोखिम में डालकर सेवा करने वालों की Live रिपोर्ट
जांच में कम समय
दरअसल सैंपल लेकर जांच करने और रिपोर्ट तैयार करने में 2 से 3 दिन का समय लगता है। आमतौर पर रक्त पट्टी बनाकर जांच करने में महज 5 रुपए का खर्च आता है। वहीं अगर किसी मरीज का दिन में सैम्पल लेकर उसकी जांच करें तो समय के साथ प्रक्रिया जटिल हो जाती है और उसमें खर्च भी 200-300 रुपए आता है।
फाइलेरिया को जानें
फाइलेरिया को आम बोलचाल की भाषा में हाथी पांव भी कहा जाता है। यह क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। समय पर इलाज हो गया तो यह रोग ठीक हो जाता है।
ग्रेड और मरीजों की संख्या
ग्रेड-1 – मरीजों के पैर में सूजन आती है और सूजन अचानक कम हो जाती है। ऐसे मरीजों की पहचान कर उसे दवा खिलाते हैं। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 150 है।
ग्रेड-2 – इस ग्रेड के मरीजों में दोबारा पैर में सूजन आ जाती है। समय पर इलाज से धीरे-धीरे सूजन कम होने लगती है। लगातार फॉलो किया जाता है। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 179 है।
ग्रेड-3 – इसे पैरोमेजन कहा जाता है। इसमें पैर आवश्यकता से अधिक सूज जाती है। मवाद आने लगाते है। तीसरे ग्रेड में पैरों में आए सूजन का कम होना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों की संख्या जिले में 116 है।
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