इस बीमारी के जीवाणु सूरज की रोशनी में छिप जाते है। दिन ढलने के लगभग 3-4 घंटे बाद वे बाहर आते हंै। दरअसल ऑक्सीजन की कमी होने के कारण बैक्टीरिया कोशिकाओं से बाहर निकलकर रक्त मेें आते है। इसलिए मरीज को चिन्हित करने के लिए रात में ही ब्लड सैंपल लेकर स्लाइड तैयार किया जाता है।
दरअसल सैंपल लेकर जांच करने और रिपोर्ट तैयार करने में 2 से 3 दिन का समय लगता है। आमतौर पर रक्त पट्टी बनाकर जांच करने में महज 5 रुपए का खर्च आता है। वहीं अगर किसी मरीज का दिन में सैम्पल लेकर उसकी जांच करें तो समय के साथ प्रक्रिया जटिल हो जाती है और उसमें खर्च भी 200-300 रुपए आता है।
फाइलेरिया को आम बोलचाल की भाषा में हाथी पांव भी कहा जाता है। यह क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। समय पर इलाज हो गया तो यह रोग ठीक हो जाता है।
ग्रेड-1 – मरीजों के पैर में सूजन आती है और सूजन अचानक कम हो जाती है। ऐसे मरीजों की पहचान कर उसे दवा खिलाते हैं। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 150 है।
ग्रेड-2 – इस ग्रेड के मरीजों में दोबारा पैर में सूजन आ जाती है। समय पर इलाज से धीरे-धीरे सूजन कम होने लगती है। लगातार फॉलो किया जाता है। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 179 है।
ग्रेड-3 – इसे पैरोमेजन कहा जाता है। इसमें पैर आवश्यकता से अधिक सूज जाती है। मवाद आने लगाते है। तीसरे ग्रेड में पैरों में आए सूजन का कम होना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों की संख्या जिले में 116 है।