आखिर आठ साल बाद रेलवे ने इस वृद्ध महिला को 1.60 लाख रुपए का मुआवजा दिया। मया बाई का कहना है कि वह टूट चुकी थी पर भगवान कृष्ण पर भरोसा था। उसी से हिम्मत मिलती थी। डेढ़ साल पहले अपने घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रहने वाली अधिवक्ता श्यामला चौधरी के पास पहुंची। उसे अपनी समस्या बताई। अधिवक्ता ने उसे यह कहते हुए मना कर दिया कि रेलवे क्लैम्स ट्रिब्यूनल भोपाल में दावा करने का समय खत्म हो चुका है।
मया बाई के लौटाने के बाद अधिवक्ता श्यामला से रहा नहीं गया। वह खुद मयाबाई से दो बार मिली और कोई रास्ता निकालने का भरोसा दिलाया। उससे फीस नहीं लेने का भरोसा दिलाया और उसे न्याय दिलवाने में जुट गई। वह महिला के समस्याओं को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ती रही। आखिरकार उनका संघर्ष रंग लाया। रेलवे ने मयाबाई को १.६० लाख रुपए मुआवजा दिया। रेलवे बोर्ड के आदेश पर राष्ट्रीयकृत बैंक में राशि जमा है। वह फिक्स राशि की मिलने वाली ब्याज से जीवनयापन कर रही है।
अधिवक्ता ने बताया कि वह मयाबाई के प्रकरण के सिलसिले में वह राजनादगांव रेलवे स्टेशन पहुंची। जीआरपी राजनादगांव में अधिकारियों से संपर्क किया। अधिकारियों ने दस्तावेज उपलब्ध नहीं होने की बात कही। तब श्यामला ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन प्रस्तुत कर घटना का उल्लेख करते हुए रेलवे पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई की सत्यापित प्रति मांगी।
अधिवक्ता श्यमला ने बताया कि महिला के पास केवल डिस्चार्ज टिकट था। दुर्घटना के बाद वह जिला अस्पताल में भर्ती थी। ठीक होने के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दी गई। इसी दौरान दस्तावेज के रुप में महिला को डिस्चार्ज टिकट दिया गया था। इसके अलावा उसके पास कुछ नहीं था।
कामाख्या-एलटीटी सुपर फास्ट एक्सप्रेस में जनरल टिकट लेकर मयाबाई यात्रा कर रही थी। 25 अक्टूबर 2010 को वह बेलपहाड़ से दुर्ग के लिए ट्रेन में बैठी थी। ट्रेन का स्टापेज दुर्ग में नहीं होने के कारण ट्रेन आगे निकल गई। वह दरवाजे के पास खड़ी थी। ट्रेन मुढ़ीपार स्टेशन पहुंची और स्पीड कम हो गई। ट्रेन की रफ्तार लगभग 20 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। कुछ यात्री मुढ़ीपार स्टेशन में उतरे। इसी बीच यात्रियों की आपाधापी में मया बाई नीचे गिर गई और उसका पैर ट्रेन के पहिए में आ गया। महिला का आधा पंजा कट चुका है। डॉक्टरों ने 40 प्रतिशत विकलांगता निर्धारित किया है।