scriptआइएचएसडीपी के 1638 आवासों के हिसाब की फाइल गायब करने की जांच हुई | Investigation of missing files of 1638 houses of IHSDP investigated | Patrika News

आइएचएसडीपी के 1638 आवासों के हिसाब की फाइल गायब करने की जांच हुई

locationदुर्गPublished: Sep 13, 2019 09:48:28 pm

Submitted by:

Naresh Verma

उरला के आइएचएसडीपी आवासों के आवंटन में घालमेल और प्रीमियम व किराए की राशि में घोटाले के बाद अब कार्रवाई में गोलमाल सामने आया है।

आइएचएसडीपी के 1638 आवासों के हिसाब की फाइल गायब करने की जांच हुई

आइएचएसडीपी के 1638 आवासों के हिसाब की फाइल गायब करने की जांच हुई

दुर्ग . उरला के आइएचएसडीपी आवासों के आवंटन में घालमेल और प्रीमियम व किराए की राशि में घोटाले के बाद अब कार्रवाई में गोलमाल सामने आया है। जांच में गड़बड़ी की पुष्टि के साथ राजस्व निरीक्षक संजय मिश्रा और सहायक ग्रेड-3 मंदाकिनी वर्मा की संलिप्तता भी उजागर हो चुकी है। मामला एमआइसी से लेकर विधानसभा में भी उठ चुका है, लेकिन दोषियों पर एफआइआर तो दूर संबंधित विभाग से हटाने की कार्रवाई तक नहीं की गई। खास बात यह है कि मामले के खुलासे के बाद निगम में चार कमिश्नर बदल चुके हैं, लेकिन किसी ने भी इस पर गंभीरता नहीं दिखाई।
यह है पूरा मामला
नगर निगम द्वारा शहर को झोपड़ीमुक्त बनाने के मकसद से उरला में वर्ष 2007-08 में 16 करोड़ की लागत से
1638 आइएचएसडीपी आवास बनाए गए हैं। कॉलोनी में 18 मकानों वाले 91 ब्लॉक हैं। इनमें से वर्ष 2010 से 2014 के बीच 406 , नवंबर 2014 से जनवरी 2015 तक 374 और नवंबर 2015 से जनवरी 2016 के बीच 500 आवासों का आवंटन किया गया। इन आवासों के एवज में बकायदा हर माह किराया वसूल किया जा रहा था, लेकिन निगम में इनका कोई भी हिसाब नहीं है।
मामला इसलिए है बेहद गंभीर
आइएचएसडीपी के 2 लाख कीमत के मकानों को केवल 38 हजार में दिया जाना है। इसके लिए 2 से 5 हजार रुपए प्रीमियम लेकर हितग्राहियों को कब्जा दिया गया। प्रीमियम के बाद शेष राशि 8 00 रुपए प्रति माह के हिसाब से किराए के रूप में जमा कराया जाना था, लेकिन निगम के पास केवल 1280 हितग्राहियों के पहले किस्त का हिसाब है। शेष राशि कर्मचारियों द्वारा दबा लिए जाने की आशंका है। यह राशि करोड़ों में है।
बदले चार कमिश्नर, लेकिन आगे नहीं बढ़ी
मामले के खुलासे के बाद नगर निगम में चार कमिश्नर बदल चुके है। सबसे पहले तत्कालिक कमिश्नर एसके सुंदरानी ने नोटिस जारी कर हिसाब जमा कराने निर्देश दिए। इसके बाद उनकी जगह पर आए लोकेश्वर साहू ने एफआइआर दर्ज कराने के निर्देश के साथदोनों कर्मचारियों को निलंबित किया। इसके बाद के निगम कमिश्नर सुनील अग्रहरि ने दोनों को बहाल कर दिया। मौजूदा कमिश्नर इंद्रजीत बर्मन ने कार्रवाई की बात कही है पर वे पुराने मामलों को हाथ ही नहीं लगाना चाहते।
इस तरह समझे कार्रवाई में घालमेल को
पुलिस को चिट्ठी लिखकर खानापूर्ति – आवासों के आवंटन और किराए के हिसाब-किताब की जांच कराई गई तो केवल दो हितग्राही के प्रीमियम की राशि 38 हजार 6 37 का हिसाब मिला। शेष फाइलें गायब थी अथवा हिसाब आधे-अधूरे थे। आधे-अधूरे फाइलों में भी काट-छांट और ओवर राइटिंग पाया गया। इस पर एफआइआर कराया जाना था, लेकिन अफसरों पुलिस को केवल चिट्ठी लिखकर खानापूर्तिकर ली। अफसरों ने मांगने पर भी पुलिस को दस्तावेज नहीं दिए।
पहले निलंबित बाद में किया बहाल – आइएचएसडीपी आवासों के प्रीमियम और किराए की राशि में घालमेल के खुलासे के बाद पूर्व कमिश्नर लोकेश्वर साहू ने राजस्व निरीक्षक संजय मिश्रा और सहायक ग्रेड तीन मंदाकिनी वर्मा को जिम्मेदार ठहराते हुए निलंबित किया था। इसके बाद उनका तबादला हो गया। उनकी जगह आए कमिश्नर सुनील अग्रहरि ने कर्मियों को बहाल कर दिया है। नए कमिश्नर इंद्रजीत बर्मन भी इस पर ध्यान नहीं दे रहे।
पक्ष-विपक्ष दोनों पर भारी अफसरों की मनमानी
सत्ता पक्ष –
कर्मियों के पिछले दरवाजे से बहाली के खुलासे के बाद एमआइसी की बैठक में यह मामला उठा। बैठक में हंगामें के बाद अफसरों नेे बहाल किए गए कर्मचारियों को हटाने का भरोसा दिलाया था। वहीं पुलिस को दस्तावेज सौंपकर जांच आगे बढ़ाने की बात कही गई थी, लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं हुआ।
विपक्ष –
नगर निगम में विपक्ष की भूमिका में चल रहे कांग्रेसी पार्षद लगातार बैठकों में मामला उठाते रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद विधायक अरुण वोरा भी मामले को विधानसभा में उठा चुके हैं। उन्होंने इस पर प्रदेश स्तरीय समिति से जांच व दोषियों पर कार्रवाई की मांग की थी। इसका अब तक असर नहीं दिख रहा है।
पत्रिका ने किया था मामले का खुलासा
गरीबों के आवासों की फाइलें गायब होने और प्रीमियम में गड़बड़ी का खुलासा पत्रिका ने सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त दस्तावेज के आधार पर किया था। पिछले साल 14 जुलाई को मामले का खुलासा करते हुए विस्तारपूर्वक समाचार प्रकाशित किया गया। इसके बाद इसकी जांच कराई गई थी।
लोककर्म प्रभारी नगर निगम दुर्ग दिनेश देवांगन ने कहा कि मामला बेहद गंभीर है। एमआइसी में फैसले के बाद भी अफसरों ने कार्रवाई नहीं की। यह सीधे तौर पर मनमानी है। इस संबंध में जानकारी ली जाएगी। जल्द ही एमआइसी की बैठक बुलाई जाएगी और संबंधितों से जवाब-तलब किया जाएगा।
इस संबंध में विधायक अरुण वोरा का कहना है कि विधानसभा में मामला उठने के बाद भी कार्रवाई नहीं होना आश्चर्यजनक है। संभवत: अधिकारियों के लगातार बदलने के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। इसकी जानकारी ली जाएगी। विभागीय सचिव सहित मुख्यमंत्री के संज्ञान में मामला लाया जाएगा। निगम कमिश्नर को तत्काल कार्रवाई के लिए कहा जाएगा।
इइ व जांच अधिकारी नगर निगम दुर्ग मोहनपुरी गोस्वामी ने बताया कि एमआइसी की बैठक के बाद आवंटन में घालमेल और आर्थिक अनियमितता की अलग-अलग जांच कराई जा रही है। दोनों ही मामलों में प्रथम दृष्टया गड़बड़ी के प्रमाण सामने आए हैं। मतदाता सूची और राशन कार्डों के कार्यों में व्यस्तता के कारण जांच व कार्रवाई में अपेक्षाकृत प्रगति नहीं हुई, लेकिन इसे गंभीरता से लिया जा रहा है। कमिश्नर के निर्देश ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई की है।
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