सुबह साढ़े 10 बजे प्रतिमा स्थापित करने का काम शुरू हुआ। लोहे के डोरे से प्रतिमा को लपेटकर मोबाइल क्रेन से उठाने का प्रयास किया। खास तरह के पट्टे मंगाए गए। इससे लिफ्ट कर प्रतिमा शाम 5 बजे कमल वेदी में रखा जा सका। दर्जनभर टेक्नीशियन लगे थे।
आचार्य विद्यासागर और आचार्य विशुद्धसागर की प्रेरणा और मार्गदर्शन में तीर्थ बनाया जा रहा है। मूर्ति पूजक संघ के अध्यक्ष कांतिलाल बोथरा ने बताया कि तीर्थ का निर्माण पूरा होने में करीब एक साल लगेगा। इसके बाद प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई जाएगी।
तीर्थ परिसर में स्थापना से पहले प्रतिमा की शहर में शोभायात्रा निकाली गई। प्रतिमा सोमवार को सुबह ही शहर पहुंची। सरदार बल्लभभाई पटेल चौक से प्रतिमा के स्वागत के साथ शोभायात्रा निकाली गई। इसमें बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग शामिल हुए। शोभायात्रा के साथ प्रतिमा की स्थापना तक नवकार महामंत्र का जाप चलता रहा।
जैन समाज के लोग प्रतिमा को अभी से चमत्कार से जोड़कर देख रहे हैं। मूर्ति पूजक संघ के अध्यक्ष बोथरा ने बताया कि बिजौरिया में प्रतिमा को ट्राली में लोड करने के दौरान भी इसी तरह मशक्कत करना पड़ा। चार क्रेन की मदद से करीब 6 घंटे मेहनत के बाद भी प्रतिमा उठाया नहीं जा सका। इसकी जानकारी आचार्य विशुद्धसागर को दी गई।
श्री दिगंबर जैन खंडेलवाल पंचायत के संदीप लुहाडिय़ा ने बताया कि यह पद्मासन में भगवान चंद्रप्रभ की देश की सबसे बड़ी प्रतिमा है। बिना दाग वाले एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया है। उन्होंने बताया कि प्रतिमा निर्माण के लिए पत्थर को तराशने में ही छह माह लग गए। छह माह में 25 कारीगरों ने इस प्रतिमा को तैयार किया।