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मनरेगा घोटाला, गरीबों को रोजगार देने के नाम पर 201 अधूरे कामों को बता दिया पूरा, अफसरों ने डकारे 3.14 करोड़

locationदुर्गPublished: May 22, 2019 11:48:08 am

Submitted by:

Dakshi Sahu

पत्रिका के पास पिछले 4 साल के सोशल ऑडिट का पूरा डेटा है। जिसके मुताबिक जिले 3.14 करोड़ से ज्यादा का फर्जीवाड़ा किया गया है।

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मनरेगा घोटाला, गरीबों को रोजगार देने के नाम पर 201 अधूरे कामों को बता दिया पूरा, अफसरों ने डकारे 3.14 करोड़

हेमंत कपूर @दुर्ग. गरीबों को रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा में जमकर घोटाला हो रहा है। आधे-अधूरे काम को पूरा बताकर, सामग्रियों के फर्जी बिल और चहेतों को उपकृत करने मस्टररोल में फर्जी हाजिरी दिखाकर सरकारी धन का बंदरबांट किया जा रहा है। इसका खुलासा मनरेगा के सोशल ऑडिट में हुआ है। पत्रिका के पास पिछले 4 साल के सोशल ऑडिट का पूरा डेटा है। जिसके मुताबिक जिले 3.14 करोड़ से ज्यादा का फर्जीवाड़ा किया गया है।
106 करोड़ से 18 हजार से ज्यादा काम
मनरेगा के तहत जरूरतमंद गरीबों को कम से कम 200 दिन रोजगार उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके लिए 4 साल में जिले में 106 करोड़ के 18 हजार 441 से ज्यादा काम कराए गए हैं। इनमें अधिकतर मिट्टी से संबंधित काम हंै। इस कामों का टेक्नीकल टीम से सोशल ऑडिट कराया गया।
वर्ष 2016 -17 के आंकड़ों से इस तरह समझे वर्ष गड़बड़ी को
307 – ग्राम पंचायतों में कराए4228 काम
37.70 – करोड़ रुपए खर्च किए गए
3431 – कामों का सोशल ऑडिट में पड़ताल
1765 – श्रमिकों को भुगतान नहीं करना पाया गया
782 – मजदूरों की फर्जी उपस्थिति दिखाकर गड़बड़ी
02 – मामले सामग्रियों के फर्जीबिल के आए सामने
16 – काम आधे-अधूरे पाए गए
18.36 – लाख का घोटाला आया सामने
60 से 95 फीसदी कामों का ऑडिट
टेक्नीकल टीमों को गांवों में भेजकर 60 से 95 फीसदी तक कामों का सोशल ऑडिट कराया गया। इसके तहत सबसे पहले ग्राम सभाओं में काम का विवरण और मस्टर रोल रखकर मजदूरों का सत्यापन कराया गया। इसके बाद काम का मौका मुआयना कर खर्च का आंकलन किया गया।
सामग्री के बिल में जमकर गड़बड़ी
सबसे ज्यादा गड़बड़ी सामग्रियों की खरीदी के बिल और आधे अधूरे कामों का भुगतान दिखाकर किया है। 2014-15 में सामग्रियों के फर्जी बिल के 41 व अधूरे काम के 105 मामले सामने आए। इसी तरह 2015-16 में 67 फर्जी बिल, 80 अधूरे काम, 2016 -17 में फर्जी बिल के 2 और अधूरे काम के 16 प्रकरण सामने आए थे।
सीधी बात, सीधी बात, के.के. तिवारी, एसीइओ व नोडल अधिकारी, जिला पंचायत दुर्ग
Q. सोशल ऑडिट की जरूरत क्यों होती है और किस तरह की जाती है?
A. मनरेगा के कामों में पारदर्शिता के लिए सोशल ऑडिट का प्रावधान किया गया है। इसके तहत ग्राम सभा के सामने मस्टररोल का सत्यापन कराया जाता। इसके अलावा मौके पर जाकर काम का भौतिक सत्यापन भी कराया जाता है।
Q. अब तक ऑडिट में किस तरह के मामले सामने आए हैं? जिले में क्या स्थिति है?
A. सोशल ऑडिट के फर्जी उपस्थिति दिखाकर राशि निकालने, सामग्रियों के फर्जी बिल व काम के भौतिक सत्यापन में वाजिब खर्च में गड़बड़े जैसे मामले सामने आते हैं। जिले में भी ऐसे मामले सामने आए हैं।
Q. ऐसे मामलों में किसकी जिम्मेदारी होती है व किस तरह की कार्रवाई की जाती है?
A. गड़बड़ी के मामलों का संबंधितों से निराकरण कराया जाता है। टेक्नीकल कमेटी और जिला स्तरीय कमेटी इसका निराकरण कराती है। ऐसे मामलों में वसूली का भी प्रावधान है। जिले में कुछ मामलों में वसूली भी हुई है। इसके अलावा नोटिस भी जारी किए गए हैं।
तीनों ब्लॉक में हुआ घोटाला
9.31 लाख की गड़बड़ी पाई गए पाटन के गांवों में
6.24 लाख का घालमेल मिला धमधा ब्लाक में
2.82 लाख का बंदरबांट सामने आया दुर्ग में

हर साल होता रहा घोटाला
4 साल में 3 करोड़ 14 लाख 39 हजार की गड़बड़ी सामने आई है
2014-15 में सर्वाधिक 1 करोड़ 62 लाख 6 2 हजार का घोटाला हुआ मनरेगा में
2015-16 में सोशल ऑडिट में 1 करोड़ 28 लाख6 7 हजार की गड़बड़ी आई सामने।
2016 -17 में सबसे कम 18 लाख 36 हजार रुपएकी गड़बड़ी खुली।
2017-18 के ऑडिट में भी 21 लाख 74 हजार से ज्यादा की गड़बड़ी उजागर हुई है।
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