संथारा लेने के बाद उनके निवास में संतों व जैन समाज के लोगों को जमावड़ा लगा था। दिवंगत प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में हरनाबांधा मुक्तिधाम के लिए न केवल दान दिया, बल्कि उन्होंने मुक्तिधाम के जीर्णोधार के लिए भी प्रयास किया। आसपास के क्षेत्र में हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए उन्होंने विशेष पहल की थी। संथारा के बाद दोपहर 3 बजे हरनाबांधा मुक्तिधाम में उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया गया। वे ताराचंद शांतिलाल कांकरिया के भ्राता और आशीष व अंकुश के पिता थे।
महावीर के जय घोष के साथ निकली बैकुंठी
संथारा लेने के बाद दिवंगत प्रेमचंद कांकरिया का बैकुंठी निकाली गई। बैकुंठी निवास स्थान से गांधी चौक, मोती कॉम्पलेक्स, इंदिरा मार्केट, लुचकी चौक होते हरनाबांधा मुक्तिधाम पहुंची। इस दौरान बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग बैकुंठी में भगवान महावीर के जयघोष के साथ शामिल हुए।