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आचार संहिता ने अटकाई सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति, 156 आवेदन में केवल 40 नाम भेजने पर उठाए सवाल

locationदुर्गPublished: Mar 13, 2019 10:53:38 pm

जिला न्यायालय में सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति आचार संहिता की वजह से अटक गई। वहीं दूसरी ओर हाल ही में भेजे गए सूची पर अधिवक्ताओं ने नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि सूची बनाने में चहेतों को स्थान दिया गया है।

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आचार संहिता ने अटकाई लोक अभियोजकों की नियुक्ति, 156 आवेदन में केवल 40 नाम ही भेजा

दुर्ग@Patrika. जिला न्यायालय में सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति आचार संहिता की वजह से अटक गई। वहीं दूसरी ओर हाल ही में भेजे गए सूची पर अधिवक्ताओं ने नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि सूची बनाने में चहेतों को स्थान दिया गया है।
आचार संहिता लगने के कारण अब नियुक्ति जून अंतिम सप्ताह में
बता दें कि जिला न्यायालय में विशेष लोक अभियोजक के अलावा अतिरिक्त लोक अभियोजक की नियुक्ति विधि विभाग द्वारा किया जाना है। सूची के आधार पर ८ अधिवक्ताओं की नियुक्ति होना है। अनुमान लगाया जा रहा है कि आचार सहिता लगने के कारण अब नियुक्ति जून अंतिम सप्ताह में होगी। अधिवक्ताओं का कहना है कि जिला न्यायालय द्वारा विधि विभाग को भेजी गई सूची विषगंतिपूर्ण है। @Patrika.यहीं कारण है कि अधिवक्ता सदस्य सूची को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर सूची निष्पक्ष बनाई गई है तो उसे सार्वजनिक करने में किसी प्रकार की समस्या नहीं होनी चाहिए।
156 आवेदन में केवल 40 नाम ही भेजा
अधिवक्ताओं का कहना है कि लोक अभियोजक के लिए १४ और अतिरिक्त लोक अभियोजक के लिए १४२ अधिवक्ताओं ने आवेदन प्रस्तुत किया है। @Patrika. इस तरह आठ पद के लिए कुल १५६ आवेदन जमा हुए है। अधिवक्ताओं का कहना है कि आवेदनों की छंटनी कर राज्य विधि विभाग को भेजा गया है। सूची तैयार करने में क्राइटेरिया का ध्यान नहीं रखा गया है।
इनका कहना है

अधिवक्ता रविशंकर सिंह का कहना है कि जिन अधिवक्ताओं का नाम भेजा गया है उनका मूल्यांकन किया ही नहीं है। पैनल में जिनका नाम भेजना चाहिए वे अनुभवी होना चाहिए। योग्य अधिवक्ताओं को दरकिनार किया गया है।
अधिवक्ता रजनीश श्रीवास्तव का कहना है कि सूची स्थानीय स्तर पर बनाना ही गलत है। आवेदन को सीधे विधि विभाग भेजना चाहिए। जिन्होंने आवेदन प्रस्तुत किया है उनकी योग्यता का मूल्यांकन किन बिन्दु पर किया है यह स्पष्ट होना चाहिए।
अधिवक्ता अनिल जायसवाल का कहना है कि सूची शार्ट आउट करने से पहले एक समिति बनानी थी। समिति निर्धारित करती कि किसका नाम भेजना है। इससे विवाद ही नहीं होता या नहीं तो पूरे १५६ नामों को भेजा जाना था।
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