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चावल-दाल की राशि घटाने के बाद भी रेंजर की संपत्ति निकली 15 लाख बेनामी, पढ़ें खबर

locationदुर्गPublished: Oct 04, 2017 09:25:44 pm

तत्कालीन रेंजर बद्री बिसाल सिंह को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा के तहत 2 वर्ष सश्रम और 5 ह्जार जुर्माना किया है।

Decision
दुर्ग. बेनामी संपत्ति रखने के मामले में बुधवार को विशेष न्यायालय आर्थिक अपराध के न्यायाधीश सत्येन्द्र साहू ने फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने तत्कालीन रेंजर बद्री बिसाल सिंह (59 साल) को दोषी ठहराया। आरोपी रेंजर को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा १३(१) ई, 13 (2) के तहत दो वर्ष सश्रम और पांच ह्जार जुर्माना किया है। जुर्माना राशि जमा नहीं करने पर आरोपी को छह माह अतिरिक्त जेल में रहना होगा। खास बात यह है कि बद्री बिसाल जिले के पहले अधिकारी है जिसे आय से अधिक धन कमाने पर सजा सुनाई गई। जांच के दौरान एसीबी के अधिकारियों को 15.30 लाख रुपए हिसाब नहीं मिलने पर एफआईआर कर प्रकरण न्यायाल में प्रस्तुत किया था।
30 जुलाई 1996 को रेंजर के मुक्त नगर स्थित आवास और दुकान में छापामार कार्रवाई
प्रकरण के मुताबिक एन्टी करप्शन ब्यूरों (एसीबी) के अधिकारियों को सूचना मिली थी कि लोक सेवक होते हुए तत्कालीन रेंजर ने आय से अधिक संपत्ति एकत्र की है। इसी सूचना के आधार पर अधिकारियों ने 30 जुलाई 1996 को रेंजर के मुक्त नगर स्थित आवास और आवास से लगे हुए सागर हार्डवेयर दुकान में छापामार कार्रवाई की। इस दौरान अधिकारियों ने जांच तीन चरणों मे की। पहले चरण में नौकरी की शुरुआत से 1985 तक के आय को जोड़ा। फिर 1985 से1996 तक के आय की समीक्षा की। आय के आधार पर ही रेंजर द्वारा बेनामी संपत्ति का आकलन किया गया। जांच के दौरान 15.30 लाख रुपए का हिसाब नहीं मिलने पर प्रकरण दर्जकर अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया।
फैसला 68 पेज में
न्यायाधीश ने फैसला भोजन अवकाश के पहले ही सुना दिया था। फैसला ६८ पृष्ठ में है। न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि रेंजर ने सेवाकाल के दौरान पत्नी और परिवार के सदस्यों का आय-व्यय व उपहारों की नियमानुसार सूचना विभाग को नही दी, इसलिए दोषी है। इसी वजह से पत्नी व परिवार के सदस्यों के नाम से चल अचल संपत्ति को राजसात करने योग्य नहीं है। हालाकि जब्त संपत्ति को परिवार के सदस्यों ने पहले ही सूपुर्द नामा में ले रखा है।

ऐसे की गई संपत्ति की गणना
जांच अधिकारियों ने पहले वेतन का आंकलन किया। इसके बाद वेतन में से जमा राशि से मिलने वाले ब्याज की गणना की। साथ ही मकान बिक्री, वाहन बेचने और मकान व दुकान से होने वाले आय की गणना की। रेंजर ने पैत्रिक संपत्ति से आय होने की जानकारी दी थी। इस जानकारी को आधार बनाकर कृषि से होने वाले आय को अलग किया। जांच के दौरान बीमा के रुप में निवेश किए १.५ लाख रुपए को अलग रखा गया था। सभी आय को योग ? किया गया। इसके बाद आय में से ६० प्रतिशत की राशि को खर्च बताते हुए घटाया गया। इसमें मनोरंजन, राशन, भवन निर्माण, बीमा प्रीमियम, टैक्स, वाहन खरीदना, आलमारी, टीवी, फ्रिज व अन्य संसाधन के वस्तु खरीदने, बच्चों की शिक्षा आदि शामिल था। इसके बाद भी १५.३० लाख की संपत्ति का हिसाब नहीं मिला।
जमानत पर रिहा हुए तत्कालीन रेंजर
वर्तमान में आरोपी सेवानिवृत्त हो चुके है। फैसले के समय वे न्यायालय में उपस्थित थे। फैसला सुनाए जाने के बाद उन्होंने ने न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। न्यायालय ने जमानत आवेदन स्वीकार करते हुए रिहाई का आदेश दिया।
जीतने के बाद भी हाईकोर्ट की शरण
विशेष लोक अभियोजक फरिहा आमीन ने बताया कि प्रकरण पर फैसला शासन के पक्ष में हैं। फैसले में बेनामी संपत्ति को राजसात नहीं किया गया है। बेनामी संपत्ति को राजसात करने के लिए हाईकोर्ट में अपील करेंगे। प्रस्ताव शासन को जल्द भेजा जाएगा।
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