मेडिकल ऑफिसर श्रीशांत दुबे का कहना है कि वह 3 माह से कोविड ड्यूटी कर रहे हैं। क्वारंटाइन सेंटर और डोर टू डोर सैंपलिंग लेने के बाद वह फीवर क्लीनिक में मरीजों की समस्याओं को सुन रहे हैं। इस दौरान संभावितों पर विशेष नजर रख रहे हैं। उनका कहना है कि फीवर क्लीनिक में कई तरह के मरीज आते है। पहली बार में देखकर तय नहीं किया जा सकता वह व्यक्ति कोरोना संक्रिमित है कि नहीं? हर दिन क्लीनिक की परिस्थितियां बदलती रही है।
डॉ. श्रीशांत बताते है कि फीवर क्लीनिक में हर दिन 25 प्रतिशत यानी 25 से 30 मरीज ऐसे होते है जिन्हे शंकाएं घेरे रहती है। दरअसल उन्हें कुछ नहीं हुआ रहता है, मौसमी सर्दी जुकाम और बुखार आने पर वे बिना जांच इस नतीजे पर पहुंच जाते है कि उन्हें कोरोना को चुका है। तब उन्हें समझाना बेहद कठिन होता। ऐसे व्यक्तियों की काउंसलिंग करने में सबसे ज्यादा समय लगता है। पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वे ऐेसे लोगों को क्लीनिक से बाहर भेज घर पर रहकर आराम करने की सलाह देते हैं। डॉक्टर का कहना है कि जब तक दिमाग से भ्रम नहीं निकलेगा वह स्वयं को बीमार महसूस करेगा।